राकेश अचल। शीर्षक पढ़कर न चौंकिए न विचलित होईए, लेकिन सावधान जरूर हो जाईए क्योंकि इमरजेंसी के पचास साल बाद भारत एक और इमरजेंसी की ओर बढ़ रहा है। जिसे आने वाले दिनों में’ ‘सुपर इमरजेंसी’ कहा जा सकता है। हमारी मौजूदा सरकार ने संसद के मानसून सत्र के समाप्त होने की पूर्व संध्या पर लोकसभा में संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 पेश कर इस ‘सुपर इमरजेंसी’ की आहट दे दी है।
सुपर इमरजेंसी लादने के लिए एक बहाना तलाशा गया है कि फिलहाल भारतीय संविधान में गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए मंत्री को हटाने के लिए प्रावधान नहीं है। ऐसे मामलों में प्रधानमंत्री या केंद्रीय मंत्रिपरिषद के किसी मंत्री और राज्यों एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के मुख्यमंत्री या मंत्रिपरिषद के किसी मंत्री को हटाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239ए में बदलाव की जरूरत महसूस की गई है। आपको बता दें कि लोकसभा में पेश किए गए 130वां संविधान संशोधन विधेयक का उद्देश्य गंभीर आपराधिक आरोपों (5 वर्ष या अधिक की सजा वाले अपराध) में गिरफ्तार होने या 30 दिनों तक हिरासत में रहने पर प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्रियों को पद से हटाने का प्रावधान करना है। यह विधेयक अनुच्छेद 75 (केंद्र) और अनुच्छेद 164 (राज्य) में संशोधन करता है, इस विधेयक में यह भी प्रावधान है कि हिरासत से रिहाई के बाद राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा पुनर्नियुक्ति संभव है।
विधेयक को संसद की संयुक्त समिति को भेजा गया है और विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस और एआईएमआईएम ने इसे संविधान विरोधी और लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। विधेयक पेश करते समय केंद्रीय गृह मंत्री बेहद डरे हुए थे। वे हमेशा पहली पंक्ति में बैठते थे, लेकिन 20 अगस्त को चौथी पंक्ति में बैठे। शाह अपनी सुरक्षा के लिए अतिरिक्त मार्शल भी साथ में लाए थे, मुमकिन है कि वे सीआईएसएफ के ही जवान हों। इस विधेयक को पेश करते ही पक्ष-विपक्ष के सांसदों में धक्का-मुक्की भी हुई। विपक्ष ने विधेयक की प्रतियां फाड़कर गृह मंत्री के ऊपर उछाल दीं। बात आगे बढ़ सकती थी, लेकिन सभापति ने सदन की कार्रवाई 21 अगस्त तक के लिए स्थगित कर स्थिति को बेकाबू होने से रोका। विपक्ष के विरोध के प्रति पहले से आशंकित और सरकार की मंशा के अनुरूप विधेयक जेपीसी को भेज दिया गया। अब ये विधेयक संसद के आगामी सत्र तक जेपीसी के पास रहेगा और इस विधेयक को भी उसी तरह कानून बना दिया जाएगा जैसे कि वक्फ बोर्ड कानून बना दिया गया। ये कानून अभी सुप्रीम कोर्ट के पास सेफ (सुरक्षित) रखा हुआ है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 130वें संविधान संशोधन विधेयक को लेकर कहा है कि ‘130वां संविधान संशोधन विधेयक ‘सुपर-इमरजेंसी’ से भी आगे का कदम है, जो भारत में लोकतांत्रिक युग को हमेशा के लिए समाप्त कर देगा’। उन्होंने दावा किया कि ‘मोदी सरकार के इस विधेयक का उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता को समाप्त करना है और इसके जरिए मौजूदा केंद्र सरकार के ‘एक व्यक्ति-एक पार्टी-एक सरकार’ सिस्टम को मजबूत करने का प्रयास है’।
जरूरी नहीं कि इस विधेयक को लेकर जैसा ममता बनर्जी सोचती हैं वैसा ही पूरा देश भी सोचे, लेकिन इस समय वोट चोरी को लेकर एकजुट हुआ विपक्ष जरूर ममता बनर्जी की तरह सोच सकता है। विपक्ष को एक करने के काम पहले एसआईआर आया और अब लगता है कि 130वां संविधान संशोधन विधेयक भी विपक्ष को एक करने में सहायक होगा। सत्ता पक्ष की नीयत यदि इस विधेयक को लेकर साफ होती तो इसे संसद सत्र की शुरुआत में ही लाया जाता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। संसद में इस विधेयक को जानबूझकर सत्र समापन की पूर्व संध्या पर लाया गया ताकि इस विधेयक पर बहस हो ही न पाए। ये विधेयक इसलिए भी आपत्तिजनक है क्योंकि ये देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप बिल्कुल नहीं है। इस देश में शांति भंग करने के आरोपी को जमानत हासिल करने में महीनों लग जाते हैं, ऐसे में केवल आरोप लगने और गिरफ्तारी होने के बाद 30 दिन की हिरासत सदस्यता छीनने का वाजिब आधार नहीं है। मुझे लगता है कि भाजपा आने वाले दिनों मे इस विधेयक को लेकर बिहार विधानसभा चुनाव में भी उतरेगी, क्योंकि मतदाता सूची में काट-छांट के मुद्दे पर सरकार बचाव की मुद्रा में है। इसे आप शतुरमुर्गी मुद्रा भी कह सकते हैं। आने वाले दिनों में ये विधेयक लगातार जैरे बहस रहेगा।
वैसे एडीआर रिपोर्ट कहती है कि वर्तमान लोकसभा के 543 सदस्यों में से 251 यानी 46 फीसदी सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसमें 25 से अधिक को दोषी भी ठहराया जा चुका है। कुल 233 सांसदों (43 प्रतिशत) ने अपने विरुद्ध आपराधिक मामले घोषित किए थे। वहीं यह आंकड़ा 2019 में 233 (43%), 2014 में यह आंकड़ा 185 (34%), 2009 में 162 (30%) और 2004 में 125 (28 प्रतिशत था। रिपोर्ट के अनुसार 18वीं लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भाजपा के 240 विजयी उम्मीदवारों में से 94 (39 प्रतिशत) पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। कांग्रेस के 99 सांसदों में से 49 (49 प्रतिशत) ने आपराधिक मामले घोषित किए हैं और समाजवादी पार्टी के 37 सांसदों में से 21 (56 प्रतिशत) पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। TMC के 29 में से 13 (44 प्रतिशत), डीएमके के 22 में से 13 (59 प्रतिशत), टीडीपी के 16 में से 8 (50 प्रतिशत) और शिवसेना के सात विजयी उम्मीदवारों में से पांच (71 प्रतिशत) ने आपराधिक मामले घोषित किए हैं। विश्लेषण में पाया गया कि 63 (26 प्रतिशत) भाजपा उम्मीदवारों, 32 (32 प्रतिशत) कांग्रेस उम्मीदवारों और 17 (46 प्रतिशत) सपा उम्मीदवारों ने गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। रिपोर्ट कहती है कि 7 (24 प्रतिशत) टीएमसी उम्मीदवार, 6 (27 प्रतिशत) डीएमके उम्मीदवार, 5 (31 प्रतिशत) टीडीपी उम्मीदवार और 4 (57 प्रतिशत) शिवसेना उम्मीदवार गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। इस विधेयक के गुण-दोष ही बहस का मुद्दा हो सकते थे, लेकिन सरकार बहस से पहले ही भाग खड़ी हुई।
मुझे याद है कि देश में जब भी ऐसे तानाशाही को मजबूत करने वाले विधेयक किसी राज्य या केंद्र की सरकार ने लाने की कोशिश की है, मुंह की खाई है। बिहार का एक प्रेस विधेयक आपको याद होगा। बहरहाल देश एक अघोषित इमरजेंसी झेल ही रहा था उसे अब सुपर इमरजेंसी में बदलने की कोशिश की जा रही है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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