राकेश अचल। बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने से पहले ही भाजपा की बैसाखी बने जनता दल यू और दूसरे संगठनों के दो फांक होने की सुगबुगाहट तेज हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गयाजी दौरा कई सियासी संकेत छोड़ गया है। गयाजी में आयोजित सभा में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन से पहले मंच पर मौजूद जेडीयू के वरिष्ठ नेता लल्लन सिंह और आरएलएम प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की ओर मुस्कुराते हुए कुछ इशारा किया। मंच पर हुई यह हलचल कैमरों में कैद हो गई और अब इसे लेकर राजनीति के गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
आपको याद होगा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की स्थापना 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के समय हुई थी, तब भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में 13-24 दलों का गठबंधन बना था। तब से लेकर 27 साल में एनडीए से कई दल अलग हो चुके हैं। गठबंधन में नए दलों के जुड़ने और पुराने दलों के अलग होने का सिलसिला अनंत है। कभी कोई दल नागरिकता संशोधन बिल (सीएए), अनुच्छेद 370 हटाने या किसान कानून पर मतभेद के कारण जुड़ा तो कोई अलग हो गया। अनेक दल चुनावों में सीट बंटवारा विवाद की वजह से गठबंधन के बाहर हो गए तो कुछ क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर भाजपा से छिटक गए। मणिपुर हिंसा या बिहार/महाराष्ट्र की राजनीति इसका उदाहरण है। भाजपा की बढ़ती ताकत से भी छोटे दलों को लगता है कि बीजेपी उनका महत्व कम कर रही है।
आज की केंद्र सरकार की बैसाखी बना जनता दल (यूनाइटेड) 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाने के विरोध में एनडीए से अलग हुआ था और यूपीए से जुड़ गया था। भाजपा की दूसरी बैसाखी तेलुगु देशम पार्टी 2018 में आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा न मिलने पर एनडीए से अलग हुई, लेकिन 2024 में फिर जुड़ गई। इसी तरह शिरोमणि अकाली दल 2020 में कृषि कानूनों के विरोध में भाजपा से अलग हो गया। बिहार से पहले महाराष्ट्र में भाजपा की पुरानी सहयोगी शिवसेना, भाजपा की वजह से ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद विभाजित हुई। उद्धव ठाकरे गुट अलग हो गया, एकनाथ शिंदे का गुट आजकल भाजपा के साथ है। स्वाभिमानी पक्षा भी 2019 में किसान कानूनों के विरोध में भाजपा से अलग हो गया था। 2021 में अगपा असम में स्थानीय मुद्दों पर भाजपा से अलग हुई बाद में फिर जुड़ गई। जम्मू कश्मीर में भाजपा के साथ रही पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी 2019 में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भाजपा से अलग हो गई। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा दार्जिलिंग में क्षेत्रीय मांगें पूरी न होने पर 2020 में भाजपा का गठबंधन छोड़ गया। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में सीट शेयरिंग विवाद पर टूटी फिर जुड़ी।
भाजपा ने प्रायः अपने सहयोगी दलों को या तो तोड़ दिया या उन्हें तवज्जो नहीं दी। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेकुलर) 2019 बिहार में सीट न मिलने पर भाजपा से दूर हुआ। नागालैंड का नागा पीपुल्स फ्रंट, कर्नाटक जनता पार्टी और बाद में भाजपा के बागी बीएस येदियुरप्पा की पार्टी अलग हुई बाद में भाजपा में विलय हो गई। लोक जनशक्ति पार्टी को 2021 में भाजपा ने तोड़ा, हरियाणा में इंडियन नेशनल लोक दल गठबंधन से अलग हुआ। त्रिणमूल कांग्रेस स्थाई रूप से मूल एनडीए की सदस्य थी, लेकिन 2009 में अलग हो गई और आज भाजपा की दुश्मन नंबर एक है। ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी 2022 में अलग हुई और सौदा पटने पर 2025 में फिर शामिल हो गई। यूपी में ही अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल से भाजपा के रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे। संजय निषाद की निषाद पार्टी, मिजो नेशनल फ्रंट, कुकी पीपुल्स अलायंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, गोवा फॉरवर्ड पार्टी, जन्नायक जनता पार्टी पुत्तिया तमिलागम, एडीएमके जैसे तमाम क्षेत्रीय दल भाजपा की अहमन्यता के गंभीर शिकार बने।
लौटकर बिहार आते हैं। बिहार के गयाजी में प्रधानमंत्री मोदी सभा के दौरान जब मंच पर मौजूद एनडीए के सभी नेताओं का हाथ जोड़कर अभिवादन कर रहे थे, उसी दौरान वह मुस्कुराते हुए आरएलएम प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के पास रुके और कुछ बातचीत की। वहीं इसके बाद वह आगे बढ़ते गए, फिर जैसे ही केंद्रीय मंत्री लल्लन सिंह के पास पहुंचे उनको भी कुछ कहा। इसके बाद लल्लन सिंह ने सिर हिलाते हुए हां कहा। इस दौरान ये दोनों तस्वीरें कैमरे में कैद हो गईं। बिहार चुनाव को देखते हुए ये तस्वीरें काफी कुछ इशारा करती है। सामान्य तौर पर इसे मंचीय औपचारिकता कहा जा सकता है, लेकिन चुनावी साल में इस इशारे को हल्के में नहीं लिया जा सकता। खासकर तब जब लल्लन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा की बिहार चुनाव में अहम भूमिका मानी जा रही है। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए खेमे में सीट बंटवारे और सहयोगी दलों की भूमिका को लेकर गहमागहमी जारी है। ऐसे में मोदी का यह इशारा गठबंधन की मजबूती और एकजुटता का संकेत हो सकता है। इससे जहां जेडीयू में टूट की अटकलें बढी हैं वहीं ये भी माना जा रहा है कि भाजपा उपेंद्र कुशवाहा को भी सम्मानजनक जगह देने का मूड बना चुकी है।
आपको पता है कि एनडीए की अहम सहयोगी जेडीयू के अंदर नीतिश कुमार के नेतृत्व को लेकर असंतोष है। मोदी ऐसे में लल्लन पर हाथ रखकर शिव सेना की तरह जेडीयू को भी दो फांक करना चाहते हैं। एसआईआर के मुद्दे पर बुरी तरह से घिरी भाजपा बाजी जीतने के लिए किसे छोड़ दे और किसे साथ ले ले अनुमान लगाना कठिन है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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