राकेश अचल। हिंदुस्तान में ग्वालियर के सिंधिया को कौन नहीं जानता, लेकिन सिंधिया दल यानि उनकी भाजपा की लीला अपरंपार है। सिंधिया की भाजपा सिंधिया को एक मुस्लिम संत की जियारत करने से नहीं रोकती, लेकिन एक मुस्लिम को रामलीला में केवट का अभिनय करना बर्दास्त नहीं कर पाती। साथ ही उस मुस्लिम को रामलीला से बाहर कर देती है जो एक दशक से रामलीला के राम को गंगा पार करा रहा था।
मध्यप्रदेश के ग्वालियर में गरबा पंडालों में मुसलमानों की एंट्री बैन होने के बाद अब रामलीला में मुस्लिम पदाधिकारियों के प्रवेश पर पाबंदियां लगना शुरू हो गई है। ग्वालियर में आयोजित रामलीला में सह-संयोजक पद पर काबिज नूर आलम उर्फ गुड्डू वारसी को हिंदू संगठनों के विरोध के बाद पद से हटा दिया गया। ग्वालियर में 100 साल से ज्यादा पुरानी रामलीला में पूर्व पार्षद नूर आलम उर्फ गुड्डू वारसी 20 साल से सह-संयोजक थे। इस बार नूर आलम उर्फ गुड्डू को राम बारात चल समारोह का संयोजक बनाया गया था। गुरुवार शाम को राम बारात शुरू होने वाली थी कि उससे पहले ही हिंदू संगठनों ने नूर आलम का विरोध शुरू कर दिया था। ग्वालियर के हिंदू संगठनों के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर पूर्व पार्षद गुड्डू वारसी को लेकर रामलीला के आयोजकों को जमकर खरी-खोटी सुनाई। मामला बिगड़ता देख रामलीला के संयोजक पूर्व विधायक रमेश अग्रवाल ने नूर आलम को रामलीला के चल समारोह संयोजक पद से हटा दिया। रमेश अग्रवाल ने सोशल मीडिया पर बाकायदा पत्र डालकर इसकी सूचना भी सार्वजनिक कर दी।
आपको बता दें कि पूर्व विधायक रमेश अग्रवाल और पूर्व पार्षद नूर आलम उर्फ गुड्डू केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थक हैं। पहले ये सभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस में हुआ करते थे। सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद ये सभी लोग भी भाजपा में आ गए। नूर आलम 20 साल से रामलीला के पदाधिकारी हैं, लेकिन इस बार हिंदू संगठनों के विरोध के चलते उन्हें बाहर होना पड़ा। वारसी की मुखालफत करने वालों को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा मुस्लिम संत की जियारत से कोई तकलीफ नहीं है, क्योंकि उनका विरोध करना आसान नहीं है। आपको बता दें कि सिंधिया परिवार के पारंपरिक कुल-गुरु सूफ़ी संत हज़रत (बाबा) मंसूर शाह (मंसूर शाह वली) हैं, जिनका मूल मजार महाराष्ट्र के बीड़ में है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और परिवार आज भी बाबा मंसूर शाह के उर्स/दरगाह पर जाकर परंपरा निभाते हैं। यह शाही परंपरा करीब 300 साल पुरानी बताई जाती है।
कहा जाता है कि मंसूर शाह ने महादजी सिंधिया को आशीर्वाद दिया और आधी रोटी, कुछ अंगवस्त्र जैसी चीज़ें आज भी परिवार के पास सुरक्षित बताई जाती हैं। सिंधिया परिवार गोरखी प्रांगण में तीन सदी से शाही ताजिया रखवाता है। वहां सजदा भी करता है, लेकिन किसी हिंदू संगठन की हिम्मत है कि कोई उनका विरोध करे। गरीब वारसी को केवट की भूमिका से अलग करने पर न सिंधिया कुछ बोले और न वारसी को सांत्वना दी। वारसी के साथ हुए व्यवहार से अंचल के समूचे मुस्लिम समाज में भारी असंतोष है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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