हेमंत आर्य। राजनीति और दीवानगी किसी भी व्यक्ति से कुछ भी करा सकती है और फिर राजनीति की दीवानगी का तो कहना ही क्या। राजनीति की मुख्य धारा में बने रहने के लिए किसी भी दल के कई नेता तमाम नैतिकताओं, स्वाभिमान और शर्मिंदगी को ताक पर रखने से भी नहीं चूकते। नैतिकता और स्वाभिमान को ताक पर रखकर राजनीति करने वाला नेता किसी भी पद को ना छोटा मानता है और ना अपने किसी जूनियर नेता को बड़ा। ऐसे नेताओं का एकमेव उद्देश्य होता है राजनीति की मुख्य धारा में बने रहना।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में आगामी लगभग 2 वर्ष में नगरीय निकायों एवं त्रि-स्तरीय पंचायत के चुनाव और वर्ष 2028 में विधानसभा के चुनाव होना है। इसी के मद्देनजर मध्यप्रदेश की सियासत के दोनों प्रमुख दलों भाजपा-कांग्रेस ने धीरे-धीरे अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। सत्ता हासिल करने की पहली शर्त मजबूत और सुव्यवस्थित संगठन ही होता है। ईमानदार, निष्ठावान और जमीनी जनाधार वाले कार्यकर्ताओं के कंधों पर पैर रखकर ही कोई भी राजनीतिक दल सत्ता सुंदरी का वरण कर सकता है। इसीलिए मध्यप्रदेश के दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपने संगठन में कसावट लाने की कवायद अभी से शुरू कर दी है। इसकी स्पष्ट झलक वर्तमान में हो रही संगठनात्मक नियुक्तियों में आसानी से देखी भी जा सकती है। दोनों ही प्रमुख दलों द्वारा फूंक फूंककर तमाम क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखकर नियुक्तियां की जा रही है। मुख्य विपक्षी दल तो कई जगह गुटबाजी और क्षेत्रीय क्षत्रपों के आगे नतमस्तक होता दिखाई दे रहा है, लेकिन सत्ताधारी पार्टी नई नियुक्तियों में कम ही समझौता कर रही है। हम बात कर रहे थे राजनीति में नेताओं की नैतिकता, स्वाभिमान और शर्मिंदगी की, जो कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में कम ही देखने को मिलती है।
मध्यप्रदेश के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की बात करें तो वर्तमान में इस दल की प्रदेश कार्यकारिणी के कई प्रमुख पदों पर ऐसे नेता कब्जा जमाए बैठे है जो राजनीति में वर्तमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष से कहीं ज्यादा सीनियर है, लेकिन राजनीति की दीवानगी, अति महत्वाकांक्षा और मुख्य धारा में बने रहने की सनक ने ऐसे नेताओं को नैतिकता, स्वाभिमान और शर्मिंदगी को ताक पर रखने के लिए मजबूर कर दिया। वर्तमान प्रदेश कार्यकारिणी में कुछ तो ऐसे नेता भी पदाधिकारी बने हुए हैं, जो कांग्रेस के मुख्य संगठन का राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व और अखिल भारतीय कांग्रेस के कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं, लेकिन राजनीति की दीवानगी और अति महत्वाकांक्षा ने ऐसे कई नेताओं को अपने से जूनियर नेता के नेतृत्व में काम करने के लिए भी एड़ी चोटी का जोर लगाने के लिए मजबूर कर दिया। क्षेत्र में अपना राजनीतिक वजूद (जो कि अब लगभग समाप्त ही हो चुका है) बचाए रखने के लिए ऐसे नेता आगामी वर्षों में कांग्रेस की जिला और ब्लाॅक कार्यकारिणी में भी पदाधिकारी के रूप में दिखाई दें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने विधानसभा चुनाव 2023 के बाद मध्यप्रदेश की राजनीति में पीढ़ी परिवर्तन करने के उद्देश्य से जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी थी, लेकिन लंगड़े और बारात के घोड़ों ने पार्टी हाईकमान की मंशा को पलीता लगाकर रेस के घोड़ों को एक बार फिर पीछे धकेल दिया।
जिले में दिखेगी प्रदेश कार्यकारिणी की झलक ?
जिस प्रकार कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी बनी हुई है उसे देखकर आसानी से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में भी इसकी झलक साफ दिखाई देगी। यहां भी अपने स्वाभिमान और नैतिकता से समझौता कर राजनीति के कीड़े का शिकार जिले के कई नेता अपने जूनियर के नेतृत्व में काम करते दिखाई दे सकते हैं। समझौता एक्सप्रेस के तहत वर्तमान में जिला अध्यक्ष बने युवा नेता के नेतृत्व में जिले के कितने सीनियर लोग स्वाभिमान गिरवी रखकर ईमानदारी से काम कर पाएंगे ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। हां, लेकिन इतना तो तय है कि जिले की राजनीति को ठेके पर चलाने वाले नेता अपने पुत्र मोह के कारण योग्य और जनाधार वाले युवाओं को तो आगे नहीं आने देंगे। जिला कार्यकारिणी में भी रबर स्टांप युवाओं को ही जगह मिल सकती है। कांग्रेस की स्वाभिमानी स्थानीय युवा पीढ़ी को राजनीति में जगह बनानी है तो अपने अधिकारों के लिए 2028 में भी ‘घर छोड़ो अभियान’ चलाना पड़ेगा। शाजापुर जिले की कांग्रेस राजनीति में युवाओं का भाग्योदय 2028 विधानसभा चुनाव में भी 2023 का इतिहास दोहराए जाने के बाद ही होगा।
बिदा होंगे फार्म ‘ए’ और ‘बी’ वाले अध्यक्ष…?
वर्तमान में मध्यप्रदेश कांग्रेस संगठन में ब्लाॅक अध्यक्षों की नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है। इसके लिए पार्टी हाईकमान ने जिला अध्यक्षों की नियुक्ति प्रक्रिया की तरह ही तमाम मापदंड तय किए और ब्लाॅकों में पर्यवेक्षकों को रायशुमारी के लिए पहुंचाया। इसी तारतम्य में मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले के ब्लाॅकों में भी पार्टी पर्यवेक्षक पहुंचे और कार्यकर्ताओं से रायशुमारी कर दावेदारों से आवेदन प्राप्त किए, लेकिन नियुक्तियों में पार्टी के मापदंडों का कितना पालन किया जाएगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। हां, लेकिन इतनी सुगबुगाहट जरूर सुनाई दे रही है कि वर्ष 2023 विधानसभा चुनाव के दौरान जिले की एक विधानसभा में फार्म ‘ए’ और ‘बी’ को लेकर चर्चा में आने वाले एक ब्लाॅक अध्यक्ष की बिदाई लगभग तय मानी जा रही है। पिछले काफी लंबे समय से ब्लाॅक अध्यक्ष पद पर बने रहने वाले उक्त नेता के पद को बचाने के लिए ना तो फार्म ‘ए’ वाले हथेली लगा पा रहे हैं और ना फार्म ‘बी’ वाले ही कोई मदद कर पा रहे हैं। ऐसे में अब उन्हें अपने पद को बचाने के लिए समाज की शरण में जाना पड़ा है। अब देखना यह हैं कि राजनीतिक नियुक्ति के मामले में समाज उनकी कितनी मदद कर पाता है। वैसे अभी तक का तो यही इतिहास रहा है कि नेताजी के समाज के सामने उनकी पार्टी और क्षेत्रीय क्षत्रपों को हमेशा झुकना ही पड़ा है। इस बार इतिहास बदलेगा या नेताजी की किस्मत साथ देगी, यह देखना दिलचस्प होगा।

Author: Hindusta Time News
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