जानलेवा क्यों बन रही एसआईआर ?

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राकेश अचल। पश्चिम बंगाल में एसआईआर लगातार जानलेवा होती जा रही है। मतदाता सूची से नाम कटने के डर से लोग आत्म हत्या करने लगे हैं। मतलब या तो दाल में कुछ काला है या फिर दाल को काला बनाया जा रहा है। एसआईआर को लेकर सियासत होते देख लग रहा है कि एसआईआर का खेल बंगाल में बिहार से ज्यादा खतरनाक हो सकता है।
बिहार में जब पहले चरण का मतदान शुरू हो रहा है तब बंगाल में राजधानी कोलकाता से सटे दक्षिण 24 परगना जिले के भांगर इलाके में बुधवार को एक अधेड़ व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली। परिवार का कहना है कि वो वोटर लिस्ट से नाम कटने के डर से परेशान चल रहा था। राज्य में चल रही ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ यानी एसआईआर प्रक्रिया की वजह से हुई ये अब तक की आठवीं मौत है। मतदाता सूची से नाम कटने की आशंका से जान देने वाले मृतक की पहचान शफीकुल गाजी के रूप में हुई है। वो मूल रूप से उत्तर 24 परगना के घुशीघाटा का रहने वाला था। कुछ महीनों से भांगर के जयपुर इलाके में स्थित अपने ससुराल में रह रहा था। वो एक हादसे में घायल हो गया था, तब से मानसिक रूप से परेशान था। राज्य में एसआईआर की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से वह और डर गया था। शफीकुल की पत्नी ने बताया कि वो कहता था कि उसके पास कोई आधिकारिक पहचान पत्र नहीं है। उसे डर था कि यदि उसका नाम वोटर लिस्ट से कट गया तो उसे देश से निकाल दिया जाएगा। शफीकुल ने गमछे से फांसी का फंदा बनाकर अपनी जान दे दी।
इस घटना के बाद इलाके में अफरा-तफरी मच गई। स्थानीय लोगों ने पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है। सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने इसे बीजेपी की डर फैलाने की साजिश करार दिया। तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि एसआईआर के डर से राज्य में यह आठवीं मौत है। तृमूकां विधायक शौकत मोल्ला पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचे। उन्होंने कहा कि अभिषेक बनर्जी के निर्देश पर वो वहां गए थे। उन्होंने कहा कि यह भाजपा की साजिश है, जो गरीब लोगों को डराकर उनके वोट देने का अधिकार छीनना चाहती है। हालांकि भाजपा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। प्रदेश अध्यक्ष सामिक भट्टाचार्य ने कहा कि यह सब राजनीतिक ड्रामा है। एसआईआर तो पूरे देश में चलने वाली एक नियमित प्रक्रिया है, जिससे वोटर लिस्ट को अपडेट किया जाता है। उन्होंने कहा कि यदि कोई घटना हुई है तो उसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की है, बीजेपी की नहीं। टीएमसी इन मामलों का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए कर रही है।
आपको बता दें कि जब चुनाव आयोग ने ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ की घोषणा की थी तो मुख्यमंत्री  ममता बनर्जी ने इसे ‘लोकतंत्र पर सर्जिकल स्ट्राइक’ करार दिया था। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर बूथ लेवल ऑफिसर का विरोध करने का आदेश दिया गया। टीएमसी ने आशंका जताई कि बंगाल में एक करोड़ से अधिक वोटरों के नाम काटे जा सकते हैं। खासकर मुर्शिदाबाद, मालदा जैसे मुस्लिम-बहुल इलाकों में। तृमूकां ने सुप्रीम कोर्ट जाने की धमकी दी, सड़क पर उतरने का ऐलान किया, लेकिन सिर्फ एक हफ्ते बाद ममता ने अचानक रुख बदला और कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया गया कि बीएलओ के साथ सहयोग करें, नए वोटर जोड़ें, गलत कटौती पर आपत्ति दर्ज करें। भाजपा के नेता सुवेंदु अधिकारी का कहना है कि मुख्यमंत्री ममता जानती हैं कि यदि उन्‍होंने एसआईआर को रोका तो केंद्र सरकार एक संवैधानिक संस्‍था की अवमानना का बहाना लेकर उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है और 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रपति शासन का खतरा उनकी सत्ता को सीधे चुनौती दे सकता है, इसलिए विरोध को ‘नियंत्रित सहयोग’ में बदल दिया।
आपको याद होगा कि जुलाई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में एसआईआर रोकने की राजद की याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने साफ कहा कि चुनाव आयोग की स्वायत्तता में दखल नहीं दिया जा सकता। एक आम आंकलन है कि बंगाल में कई लोगों को फर्जी तरीके से आधार कार्ड जारी किए गए हैं। भाजपा ऐसे ही लोगों को ‘घुसपैठिया’ कहकर ममता बनर्जी पर इन्‍हें प्रश्रय देने का आरोप लगाती है। उन पर रोहिंग्‍या घुसपैठियों को शरण देने का आरोप लगाया जाता है, जिसके पलटवार में ममता भाजपा से पूछती हैं कि अमित शाह बताएं कि बंगाल में कितने रोहिंग्‍या हैं ? कितने घुसपैठिए हैं ?
उल्लेखनीय है कि बंगाल से पहले ऐसी ही बहस बिहार चुनाव के बीच भी चली थी, लेकिन बंगाल की राजनीति में मुस्लिम वोटों का अच्‍छा खासा दखल है जो कि ममता बनर्जी के लिए एकमुश्‍त वोट बैंक का काम करते हैं। ममता अपने इसी वोटर बेस को पकड़कर रखना चाहती हैं। बंगाल मे यदि मुसलमानों के बीच एनआरसी का डर है तो ममता आगे बढ़कर एसआईआर को भी एनआरसी से जोड़ देती हैं। ममता ने अपने 4 किमी के मार्च में यह दोहराया हैं कि यदि एक भी आदमी का नाम गलत ढंग से वोटर लिस्‍ट से डिलीट किया गया तो वह मोदी सरकार को गिरा देंगी।
अब देखना यह है कि ममता राज्य में बिहार की तर्ज पर “वोट चोर, गद्दी छोड़” का नारा लगाने और वोट अधिकार यात्रा निकालने के लिए कांग्रेस का सहयोग मांगती हैं या नहीं ? ममता बनर्जी के लिए अकेले दम पर एसआईआर का मुकाबला करना मुमकिन नहीं है। बंगाल के संदर्भ में केंचुआ की भी ये जिम्मेदारी है कि वह मतदाताओं में डर पैदा न होने दे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

“श्री राकेश अचल जी मध्यप्रदेश के ऐसे स्वतंत्र लेखक हैं जिन्होंने 4 दशक (40 साल) तक अखबारों और टीवी चैनलों के लिए निरंतर काम किया। देश के प्रमुख हिंदी अखबार जनसत्ता, दैनिक भास्कर, नईदुनिया के अलावा एक दर्जन अन्य अखबारों में रिपोर्टर से लेकर संपादक की हैसियत से काम किया। आज तक जैसे टीवी चैनल से डेढ़ दशक (15 सालों) तक जुड़े रहे। आकाशवाणी, दूरदर्शन के लिए नियमित लेखन किया और पिछले 15 सालों से स्वतंत्र पत्रकारिता तथा लेखन कर रहे है। दुनिया के डेढ़ दर्जन से अधिक देशों की यात्रा कर चुके अचल ने यात्रा वृत्तांत, रिपोर्टज, गजल और कविता संग्रहों के अलावा उपन्यास विद्या पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान भी मिले हैं”।
Hindusta Time News
Author: Hindusta Time News

27 Years Experience Of Journlism

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