हम न हुए जोहरान

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व्यंगम
राकेश अचल। न्यूयोर्क के मेयर बनकर जोहरान ममदानी जबसे सुर्खियों में आए हैं, तभी से हमें अपने नसीब से शिकायत हो रही है। आपको पता नहीं है कि हमारा भी ख्वाब था कि हम भी एक दिन जोहरान ममदानी की तरह अपने शहर के मेयर बनें। मेयर को भारत की हिंदी पट्टी में महापौर कहा जाता है। महापौर यानि प्रथम नगर सेवक। देश का प्रथम नागरिक बनना या प्रथम नगर सेवक बनना सबके बूते की बात नहीं।
मेयर नसीब वाला ही बनता है। बिना नसीब के यदि आप मेयर बन भी जाएं तो भी आपको कोई पूछता नहीं। दरअसल मेयर बनने से पहले जोहरान बनना पडता है और जोहरान बनना आसान नहीं। मेयर जोहरान की अम्मी मीरा नायर भारतीय मूल की हिंदू हैं, पिता कोलंबिया के मुसलमान प्रोफेसर मोहम्मद ममदानी हैं। जोहरान की अहलिया सीरिया की रमा दुवाजी हैं। जोहरान के चुनाव से हिंदुस्तानी, इस्लामी और अमरीकी सब खुश हैं सिवाय ट्रंप को छोड़कर। हमारे शहर में भी पहले निर्विरोध मेयर चुने जाते थे, लेकिन एक बार हमने इस निर्विरोध निर्वाचन में खड़े होकर बाधा डाली। हालांकि हम चुनाव हार गए, लेकिन हमारी समझ में आ गया कि मेयर बनने के लिए जोहरान होना जरूरी है। बहुत से लोग बिना जोहरान बने भी मेयर बनते हैं, लेकिन उन्हे उतनी सुर्खियां नहीं मिलती जितनी कि जोहरान को मिलीं। जोहरान अपने देश के प्रथम नागरिक से टकराए। हमारे शहर में तो मेयर प्रथम नागरिक से तो टकराना दूर अपने शहर के स्वयंभू महाराज से नहीं टकरा पाते। हमारे शहर के एक महापौर लोकसभा के सदस्य भी रहे, लेकिन टकराने से हमेशा बचते रहे इसीलिए वे एक रोपवे तक नहीं बनवा पाए।
भारत में मेयर तो होते हैं, लेकिन अमेरिका जैसे हैसियत वाले नहीं होते। भारत में हैसियत केवल मंत्री-संतरी की होती है। आजकल तो यदि मंत्री-संतरी संतरों की राजधानी नागपुर से जुड़ा हो तो सोने पर सुहागा माना जाता है। अमेरिका में कोई नागपुर नहीं है, इसीलिए वहां किसी मेयर का संतरों से कोई लेना देना नहीं है। भारत में कोई 500 महापौर हैं। सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में और सबसे कम मोशा के गुजरात में, लेकिन इनमें से एक भी जोहरान बाबा की तरह इंटरनेशनल फेम का नहीं है। हो भी नही सकता, जोहरान की तरह सुर्खियों में आने के लिए काम करना पड़ता है और हमारे महापौर काम करना जानते नहीं, वे सिर्फ कमीशन लेना जानते हैं। अमेरिका में 1686 मेयर हैं, क्योंकि वहां 30 हजार की आबादी वाले शहर को भी मेयर मिल जाता है।
अमेरिका में भी सभी मेयर जोहरान की तरह चमकदार नहीं हैं, लेकिन उनकी दशा हमारे शहर की महापौर शोभा बहू जैसी भी नहीं है। हमारे यहां जोहरान जैसा मेयर बनने का सपना देखने वालों की कमी नहीं है। ये सपना हमने और हमारे छात्रों ने भी देखा, लेकिन किसी का सपना पूरा नहीं हुआ। न हमारा और न छात्रों का। सब टिकट मांगते रह गए और हम बिना टिकट चुनाव लड़ गए। हारे भी, लेकिन लड़कर हारे। बहुत से लोग तो बिना लड़े ही हार जाते हैं। हमारा स्पष्ट मत है कि मेयर हो तो जोहरान जैसा हो। जो थोड़ा हिंदू, थोड़ा मुसलमान, थोड़ा ईसाई, थोड़ा अमरीकी। यानि थोड़ा-थोड़ा सब, हमारे अन्नकूट जैसा। एक रंग वाला नहीं। एक रंग वाले संकीर्ण होते हैं हमारे स्वयं सेवी संगठन के प्रचारकों की तरह। जोहरान यदि इंडिया में होते तो अब तक लव जिहाद के किसी मुकदमें में उलझ चुके होते। वे खुशनसीब हैं कि अमेरिका के नागरिक हैं।
एक जमाना था जब हिंदुस्तान का नागरिक होना अमेरिका के नागरिक होने जैसा ही महत्वपूर्ण माना जाता था। तब हिंदुस्तान इंद्रधनुषी रंग वाला था। अब यहां तिरंगा राष्ट्रवादी ध्वज होते हुए भी सिर्फ हरा और केसरिया रंग बचा है। बात-बात पर यहां हिंदू-मुसलमान हो जाता है। हिंदुस्तान से आजाद ख्याली तिरोहित हो गई है या तिरोहित कर दी गई है। ऊपर वाले से प्रार्थना कीजिए कि हिंदुस्तान के सभी रंग वापस लौट आएं ताकि हमारे यहां भी जोहरान जैसे मेयर, एमएलए, एमपी, मंत्री, प्रधानमंत्री पैदा हो सकें।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

“श्री राकेश अचल जी मध्यप्रदेश के ऐसे स्वतंत्र लेखक हैं जिन्होंने 4 दशक (40 साल) तक अखबारों और टीवी चैनलों के लिए निरंतर काम किया। देश के प्रमुख हिंदी अखबार जनसत्ता, दैनिक भास्कर, नईदुनिया के अलावा एक दर्जन अन्य अखबारों में रिपोर्टर से लेकर संपादक की हैसियत से काम किया। आज तक जैसे टीवी चैनल से डेढ़ दशक (15 सालों) तक जुड़े रहे। आकाशवाणी, दूरदर्शन के लिए नियमित लेखन किया और पिछले 15 सालों से स्वतंत्र पत्रकारिता तथा लेखन कर रहे है। दुनिया के डेढ़ दर्जन से अधिक देशों की यात्रा कर चुके अचल ने यात्रा वृत्तांत, रिपोर्टज, गजल और कविता संग्रहों के अलावा उपन्यास विद्या पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान भी मिले हैं”।
Hindusta Time News
Author: Hindusta Time News

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