राकेश अचल। भारत में वोट चोरी के लिए लगातार बदनाम और अविश्वसनीय हो रही इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इतिहास बेहद रोचक है। यह मशीन दरअसल वोट चोरी और लूट की बढ़ती वारदातों के बाद ही चलन में आई थी। दुर्भाग्य ये कि अब खुद यही मशीन वोट चोरी का उपकरण बन गई है और अब विपक्ष एक बार फिर बैलेट पेपर की ओर लौटने को उतावला है।
भारत में ईवीएम मशीन से मतदान कराने का विचार 1977 के आसपास सामने आया। आपातकाल के समापन के फौरन बाद 1979–80 में इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड ने मिलकर पहली प्रोटोटाइप मशीन बनाई। जब मशीन बन गई तो पहली बार ईवीएम का ट्रायल केरल के पारुर विधानसभा उपचुनाव (1982) में किया गया। केरल चूंकि साक्षर और नवाचार प्रेमी राज्य है इसलिए वहां 50 में से 50 पोलिंग स्टेशनों में ईवीएम का उपयोग हुआ। फिर भी इस मशीन का विरोध हुआ और एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह चुनाव रद्द कर दिया, क्योंकि उस समय कानून में ईवीएम का उल्लेख नहीं था। ईवीएम के इस्तेमाल के लिए कटिबद्ध केंद्र सरकार ने हार नहीं मानी और 1989 में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन कर ईवीएम को कानूनी मान्यता दी। यही वह कदम था जिसने चुनाव में मशीन के व्यापक उपयोग का रास्ता खोला।
बात 1998 की है। उस साल राजस्थान, मध्यप्रदेश और दिल्ली के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हुआ तो मतदाताओं में बडा कौतूहल था। यह पहला अवसर था जब ईवीएम को बड़े चुनावी क्षेत्र में तैनात किया गया। मजे की बात ये है कि आज जो कांग्रेस ईवीएम की सबसे बड़ी विरोधी है, उसी ने लोकसभा चुनाव 2004 में इसके उपयोग का रास्ता खोला। लोकसभा चुनाव 2004 भारत का पहला ऐसा आम चुनाव बना जिसमें पूरे देश में सौ फीसदी ईवीएम का इस्तेमाल हुआ। यह दुनिया का सबसे बड़ा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग एक्सरसाइज़ माना जाता है। ईवीएम का इस्तेमाल और इसे पारदर्शी बनाने के लिए 2013 में वीवीपैट यानि वोटर वेरीफाईड पेपर ऑडिट ट्राइल सिस्टम को पहली बार नगालैंड के एक चुनाव क्षेत्र में टेस्ट किया गया। 2014 लोकसभा चुनाव में कुछ सीटों पर वीपेट का सीमित प्रयोग हुआ। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में देश के सभी मतदान केंद्रों पर ईवीएम के साथ वीपेट लगाया गया। अब भारत में हर वोट का पेपर ट्रेल उपलब्ध है, फिर भी लोगों को लगता है कि ये मशीन वोट चोरी में सरकार का साथ दे रही है।
ये हकीकत है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा चुनावी लोकतंत्र है, जो पूरी तरह ईवीएम से चुनाव कराता है। तर्क ये है कि ईवीएम इंटरनेट या किसी बाहरी नेटवर्क से नहीं जुड़ी होती, इसलिए हैकिंग का खतरा बेहद कम है। जबकि अब हैकिंग के आरोप ही सबसे ज्यादा हैं। ईवीएम के पक्ष में दलील है कि समय की बचत, तेजी से काउंटिंग और कम मानवीय गलती होती है। भारत में चुनावों के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (ईवीएम) का उपयोग मुख्य रूप से लोकसभा और विधानसभा चुनावों में किया जाता है। चुनाव आयोग के अनुसार कुल उपलब्ध ईवीएम की संख्या लगभग 55 लाख है, जिनमें से एक महत्वपूर्ण हिस्सा प्रत्येक बड़े चुनाव में तैनात किया जाता है। वर्ष 2024 लोकसभा चुनाव में लगभग 15 लाख से 18 लाख ईवीएम का उपयोग किया गया था, जिसमें प्रत्येक पोलिंग स्टेशन पर एक ईवीएम और वीवीपैट (वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल) शामिल था। कुल 10.6 लाख पोलिंग स्टेशन थे।
ईसीआई ने अब तक 5.5 मिलियन ईवीएम का उत्पादन कराया है, जो भारत के सभी चुनावों (लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय) के लिए पर्याप्त हैं। ये मशीनें बैटरी से चलती हैं और इंटरनेट से जुड़ी नहीं होती, जिससे वे सुरक्षित मानी जाती हैं। यह संख्या चुनाव के आकार के अनुसार बदल सकती है, लेकिन वर्तमान में ईसीआई के पास इतनी ही मशीनें तैनाती के लिए तैयार हैं। ईवीएम से वोट चोरी के खिलाफ कांग्रेस दिसंबर में दिल्ली में महारैली करने जा रही है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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