खिलाड़ी, कोच, प्रबंधन सवालों के घेरे में

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दृष्टिकोण
डॉ. सुधाकर आशावादी। किसी भी राष्ट्र की पहचान में खेलों का भी बड़ा योगदान होता है। खेल प्रतिभाओं के उत्कृष्ट प्रदर्शन से कुछ देश विश्वभर में अलग पहचान बनाते हैं। एथलेटिक्स में अमेरिका, जमैका, केन्या, इथियोपिया, चीन, रूस और ब्राजील जैसे देशों के खिलाड़ी उत्कृष्ट प्रदर्शन के बल पर विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हैं।
हॉकी में नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, भारत, पाकिस्तान, जर्मनी व न्यूजीलैंड जैसे देशों के खिलाडियों का प्रदर्शन सराहनीय रहता है। फुटबॉल में ब्राजील, अर्जेंटीना, स्पेन, फ्रांस और इंग्लैंड अग्रणी हैं। क्रिकेट में अनेक देश सक्रिय हो रहे हैं, लेकिन भारत, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, जैसी टीमें उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए जानी जाती हैं। दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका जैसी टीमें भी यदा कदा संघर्ष करती हुई प्रतीत होती हैं। अन्य खेलों में भी ऐसा ही है कि कुछ विशिष्ट खिलाड़ियों के प्रदर्शन से कुछ खेलों के प्रति जनमानस की रूचि बढ़ जाती है। कटु सत्य यही है कि खेल शारीरिक दक्षता को बनाए रखने और विश्व स्तरीय पहचान बनाने का माध्यम बने हुए हैं।
भारत में जब से सरकार ने खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के लिए खेलों का बजट बढ़ाया है तथा खेलों को लोकप्रिय बनाने वाले खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर धन वर्षा शुरू कर दी है तब से खिलाड़ियों पर जहां टीम में बने रहने के लिए टिकाऊ प्रदर्शन का दबाव बढ़ा है, वहीं एक से बढ़कर एक प्रतिभावान खिलाड़ियों के चलते खिलाड़ियों में भी प्रतिस्पर्द्धा बढ़ गई है। क्रिकेट की स्थिति अन्य सभी खेलों से अलग है। किसी एक मैच में जिताऊ प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी पर इतनी धन वर्षा होती है कि खिलाड़ी भी अचंभित हो जाता है। ऐसे में उस पर अपने प्रदर्शन को बार-बार दोहराने का दबाव बढ़ जाता है। खेल प्रेमी तथा खेल नियंत्रक संस्था सदैव उससे उत्कृष्ट एवं जिताऊ प्रदर्शन की अपेक्षा करने लगते हैं। मैच दर मैच खेल समीक्षक अपने सुर बदलते रहते हैं। किसी साधारण खिलाड़ी द्वारा किए गए विशेष प्रदर्शन के आधार पर मीडिया उसे फर्श से उठाकर अर्श पर बिठा देता है और खराब प्रदर्शन पर अर्श से फर्श पर ला पटकता है। खेल नियंत्रक संस्था टीम पर नियंत्रण के लिए वरिष्ठ खिलाड़ी को दायित्व सौंपती है और वह टीम पर अपने प्रयोग करता है, जिसका असर खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर पड़ता है। कई बार ऐसा होता है कि खिलाड़ी टीम प्रबंधन की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता तथा आलोचना का पात्र बनता है।
कोई यह नहीं समझना चाहता कि खेल को खेल भावना से खेलते हुए खेल के प्राथमिक नियम को याद रखा जाए कि खेल में जीत-हार चलती रहती है। बहरहाल क्रिकेट में आसमान की बुलंदी तक पहुंचकर भारतीय क्रिकेट टीम का निराशाजनक दौर चल रहा है, यशस्वी और प्रतिभाशाली खिलाड़ियों से सुसज्जित भारतीय क्रिकेट टीम अपने लचर प्रदर्शन से विपक्षी टीम से सम्मुख घुटने टेकती हुई नजर आई। इसके लिए खिलाड़ी, कोच और टीम प्रबंधन सवालों के घेरे में है। जिस व्यक्ति को क्रिकेट का क, ख, ग भी नहीं आता, वह भी टीम के लचर प्रदर्शन पर सवाल खड़े कर रहा है।
बहरहाल विश्व में कोई भी खिलाड़ी या कोई भी टीम आजीवन शीर्ष पर नहीं रह सकती। प्रदर्शन सुधार एवं प्रतिभावान खिलाड़ियों को सही समय पर अवसर देने से ही टीम विश्वभर में प्रतिभा का लोहा मनवा सकती है। सो खेल को खेल ही रहने देने तथा राजनीति का अखाड़ा न बनाने में ही देश की और क्रिकेट की भलाई है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं। विनायक फीचर्स)

     डॉ. सुधाकर आशावादी
Hindusta Time News
Author: Hindusta Time News

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