राकेश अचल। आप भारत सिंह को नहीं जानते। भारत सिंह कुशवाह ग्वालियर के सांसद हैं। ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं, लेकिन मप्र विधानसभा के सदस्य और मंत्री रह चुके है। पेशे से किसान हैं और मप्र विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की वजह से राजनीति में अपनी पहचान बना पाए हैं। भारत सिंह कुशवाह की किस्मत देखिए कि वे 2023 में विधानसभा का चुनाव हार गए, लेकिन 2024 में लोकसभा का चुनाव 70 हजार वोटों से जीत गए। भारत सिंह कुशवाह की तकलीफ ये है कि ग्वालियर के सांसद होते हुए भी उन्हें एक सांसद की तरह न काम करने दिया जा रहा है और न विकास का मसीहा बनने दिया जा रहा। आप ये जानकर हैरान होंगे कि भारत सिंह कुशवाह के रास्ते में आड़े आ रहे हैं गुना के सांसद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया। सिंधिया भले ही गुना के सांसद हैं, लेकिन वे आधे मध्यप्रदेश को (यानि पुरानी सिंधिया रियासत के भू-भाग को) अपनी रियासत ही समझते हैं। वे अकेले गुना के लिए नहीं बल्कि भिंड, मुरैना और ग्वालियर के लिए भी काम करते है। उन्हें विदिशा, उज्जैन जैसे इलाकों की भी फ़िक्र रहती है। उन्हें लगता है कि वे आज भी पुरानी ग्वालियर रियासत के महाराज हैं, इसलिए उन्हें इस पूरे इलाके की फ़िक्र करना चाहिए।
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि भारत सिंह कुशवाह के मुकाबले ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक विरासत सौ गुना ज्यादा है। भारत सिंह के पुरखे भी शायद सिंधिया रियासत की रियाया रहे होंगे, लेकिन भारत सिंह तो आजाद भारत के भारत सिंह हैं और स्वयं सांसद भी हैं। ठीक उसी तरह जैसे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया है। भारत सिंह की मुश्किल ये है कि वे हिम्मत कर ग्वालियर के लिए केंद्र से जिन तमाम योजनाओं के लिए भागदौड़ करते हैं उनके स्वीकृत होते ही वे सब योजनाएं सिंधिया अपने खाते में दर्ज करा देते हैं। जाहिर है कि सिंधिया का आभा मंडल है। उनकी दादी, पिता, बुआ तक सांसद रहीं हैं। वे किसी भी केंद्रीय मंत्री ही क्या प्रधानमंत्री जी से भी आसानी से मिल सकते हैं और किसी भी योजना को स्वीकृत भी करा सकते हैं, लेकिन उन्हें भारत सिंह को भी तो कुछ करने देना चाहिए।
ग्वालियर का जिला प्रशासन भी भारत सिंह को एक सांसद की तरह महत्व नहीं देता, खासतौर पर तब जब महाराज यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद मैदान में हों। स्थिति ये बन गई है कि अक्सर भारत सिंह कुशवाह को सरकारी बैठकों में, कार्यक्रमों में आमंत्रित ही नहीं किया जाता। अब खुद भारत सिंह उन कार्यक्रमों से कन्नी काटने लगे हैं जिनमें केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया मौजूद होते हैं। कायदे से तो सिंधिया को वरिष्ठ होने के नाते भारत सिंह को अपने साथ रखकर उनका रास्ता आसान करना चाहिए था, लेकिन वे श्रेय में किसी को भागीदार नहीं बनाते। बेचारे भारत सिंह कुशवाह की तो हैसियत ही क्या है ?
आपको बता दें कि सिंधिया ने भारत सिंह से पहले ग्वालियर के सांसद रहे विवेक नारायण शेजवलकर को भी आत्मनिर्भर सांसद नहीं बनने दिया। हालांकि विवेक नारायण शेजवलकर भारत सिंह के मुकाबले ज्यादा पढ़े लिखे (इंजीनियर) सांसद थे। उनके पिता भी सांसद रहे। विवेक नारायण शेजवलकर तो महापौर भी रहे, लेकिन शेजवलकर ने सिंधिया का लिहाज किया पर सिंधिया ने शेजवलकर का लिहाज नहीं किया। शेजवलकर से पहले नरेंद्र सिंह तोमर ग्वालियर के सांसद थे, लेकिन उनका कद पार्टी में इतना बड़ा था कि सिंधिया तोमर को अपनी छाया के अधीन नहीं कर पाए। तोमर ने भी सिंधिया को उतने समय ही महाराज माना जितने समय कि दिखाने के लिए जरूरी था।
अब भारत सिंह कुशवाह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच की बढ़ती खाई का मामला पार्टी हाईकमान के साथ ही आरएसएस तक भी पहुंच चुका है। लेकिन मजा देखिए कि पार्टी हाईकमान और संघ परिवार भी भारत सिंह के साथ खड़े होने के लिए राजी नहीं हैं। अब बेचारे भारत सिंह कुशवाह अपनी लड़ाई अकेले कब तक लड़ें ? भारत सिंह कुशवाह के राजनीतिक गुरु विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर भी खुलकर सिंधिया का विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं। सिंधिया आखिर सिंधिया है। उन्हें विकास का मसीहा बनने से कौन रोक सकता है ?
भारत सिंह कुशवाह और सिंधिया में तनातनी नई नहीं है। कुछ समय पहले भी जीवाजी विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री सिंधिया, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और राज्यपाल मांगूभाई पटेल ने प्रतिमा का अनावरण किया था। इस दौरान सांसद मौजूद नहीं थे। तब भी यह बात निकलकर आई थी कि उन्हें बुलाया ही नहीं गया था। वहीं रविवार को भी केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने जब बजट को लेकर प्रेसवार्ता की तो उसमें भी सिंधिया समर्थक ऊर्जा मंत्री तोमर और अन्य समर्थक तो नजर आए, लेकिन जिला अध्यक्ष तक नजर नहीं आए।
भारत सिंह कुशवाह ने जब ज्यादा असंतोष जताया तो कुछ समय के लिए सिंधिया ने ग्वालियर में अपनी सक्रियता कम की, लेकिन वे ज्यादा दिन ग्वालियर से दूर नहीं रह पाए। अब वे फिर सक्रिय हैं और पूरी तरह सक्रिय हैं। सिंधिया की छाया से अकेले भारत सिंह कुशवाह ही परेशान नहीं है अपितु कांग्रेस के राज्य सभा सदस्य अशोक सिंह भी दुखी है। वे सिंधिया की वजह से ग्वालियर में अपनी सांसद निधि से ऐसा कोई काम हाथ में नहीं ले पाए जो उन्हें एक सांसद के तौर पर पहचान दिला दे। अशोक सिंह के पिता स्वर्गीय राजेंद्र सिंह और पितामह डोंगर सिंह कक्का सिंधिया परिवार के विरोधी रहे, लेकिन बाद में अशोक सिंह ने हथियार डाल दिए और 2007, 2009, 2014 और 2019 में लोकसभा का चुनाव ग्वालियर सीट से लड़ा जरूर, लेकिन सिंधिया ने न उन्हें चुनाव जिताया और न जीतने दिया। अशोक सिंह कांग्रेस में दिग्विजय सिंह खेमे से आते हैं।
अब देखना ये है कि सिंधिया की छत्र छाया से ग्वालियर के भाजपा सांसद भारत सिंह कुशवाह और कांग्रेस के राज्य सभा सांसद अशोक सिंह कितने दिन तक बचे रह सकते हैं ? इन दोनों में सिंधिया का मुकाबला करने की क्षमता हालांकि है नहीं। फिर भी समय किसने देखा है। वैसे भी सिंधिया के पास झंडावरदारी के लिए उनकी अपनी पुरानी कांग्रेसियों की टीम है ही, उसमें अब कुछ भाजपाई भी शामिल हो गए हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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