राकेश अचल। वक्फ क़ानून के मुद्दे को लेकर मुर्शिदाबाद सिर्फ सुलगा ही नहीं है बल्कि अब उसे मणिपुर बनाने की कोशिश की जा रही है। अब ये बंगाल की तृमूकां सरकार और आईएनडीआईए गठबंधन की भी जिम्मेदारी है कि वो बंगाल को मणिपुर बनने से रोके। इससे पहले की आग पूरे बंगाल में भड़के और केंद्र को बंगाल में मदाखलत करने का मौक़ा मिले हिंसा पूरी तरह रुकना चाहिए, क्योंकि सत्तारूढ़ दल के लिए बंगाल की हिंसा सियासी जमीन बनाने में बहुत सहायक होने वाली है। बंगाली मुसलमानों को समझ लेना चाहिए कि किसी भी सूरत में बंगाल अब बांग्लादेश नहीं बन सकता।
वक्फ क़ानून के खिलाफ देश की आधी आबादी खड़ी है। वक्फ के नए कानून को सभी पक्षों ने अदालत में चुनौती दी है। यदि वाकई बंगाल की हिंसा के पीछे वक्फ बोर्ड क़ानून है तो बंगाल के मुसलमानों को अदालत के फैसलों का इंतजार करना चाहिए। इंतजार से पहले की बेकरारी घातक है। हिंसा से देश के किसी मुसलमान को कुछ भी हासिल नहीं होगा, उलटे देश में जो सद्भावना है वो और जाती रहेगी। बंगाल में भाजपा की नहीं तृमूकां की सरकार है, इसलिए हिंसा रोकने का दायित्व उसका है। मणिपुर में तो भाजपा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार थी, लेकिन वहां भी जब सरकार नाकाम साबित हो गई तब मणिपुर को राष्ट्रपति शासन के सुपुर्द कर दिया गया। बंगाल में ऐसा करना तो केंद्र के लिए और आसान है।
हिंसा मध्यप्रदेश में भी हुई और देश के दूसरे हिस्सों में भी। इसे हर सूरत में रोका जाना चाहिए, लेकिन ये तभी मुमकिन है जब राज्य सरकारें दृढ इच्छा शक्ति से काम करें, कदम उठाएं। पता नहीं इस देश के बहुसंख्यक हिन्दू और अल्पसंख्यक मुसलमान इस हकीकत को कब तस्लीम करेंगे कि किसी भी समस्या का हल हिंसा से होना नामुमकिन है। हिंसा एक आग है जो सिर्फ नुक्सान करती है। आग से कुछ हासिल नहीं होता। हिंसा सत्ता पोषित हो या समाज पोषित काबिले बर्दाश्त नहीं है। देश को संविधान और विधान के हिसाब से चलना होगा। इसमें राजनीति नहीं हो सकती, ना ही होना चाहिए। जलते हुए जंगल से कभी खुशबू नहीं आती, जलांध ही आती है। इससे सावधान रहने की जरूरत है।
हिंसा का एक ही रूप नहीं होता है वो बहुरुपिया होती है। मेरे तमाम पाठकों ने मुझसे बंगाल की हिंसा की तुलना आगरा में करणी सेना के प्रदर्शन से न करने की बात कही है, लेकिन मेरा मानना है की करनी सेना का प्रदर्शन और मुर्शिदाबाद या गुना में हिंसा का मकसद एक ही है और वो है समाज में तनाव पैदा करना। इसे अलग-अलग चश्मे से नहीं देखा जा सकता। जैसे मैं कहता हूं कि मुसलमान हिंसा का रास्ता छोड़ें वैसे ही मैं अपने राजपूत साथियों से भी कहता हूं कि उन्हें समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन की टिप्पणी पर आग-बबूला नहीं होना चाहिए, बल्कि अपनी प्रतिक्रिया संविधान के दायरे में रहकर करना चाहिए। अब रामजीलाल सुमन तो मुसलमान नहीं हैं फिर उनकी किसी टिप्पणी पर आग-बबूला होने का मतलब ये है कि आप भावुक बहुत हैं व्यावहारिक नहीं।
दुर्भाग्य ये है कि उत्तर प्रदेश हो, मध्यप्रदेश हो, महाराष्ट्र हो या फिर बंगाल हो, हिंसा को लेकर सभी राज्य सरकारों की जिम्मेदारी एक समान है। क्योंकि मैं बार-बार कहता हूं कि हिंसा किसी भी समस्या का हल नहीं है। प्रतिकार कि लिए गांधीवाद से बड़ा कोई औजार हमारे देश में उपलब्ध नहीं है। गांधीवादी और अहिंसा के रास्ते पर चलकर हमने जो आजादी 1947 में हासिल की वो अहिंसा की मजबूती का सबसे बड़ा उदाहरण है। मुझे आशंका है कि यदि ममता बनर्जी बंगाल में हिंसा को रोकने में नाकाम रहतीं है तो उन्हें बड़ा खामियाजा भुगतान पड़ सकता है। भाजपा सरकार तो उनका शिकार करने लिए तैयार बैठी ही है। देश का दुर्भाग्य ये है कि इस समय हमारे पास ऐसा एक भी नेता नहीं है जिसकी अपील पूरा देश सुनता हो। इस समय जो नेता हैं वो ताली और थाली तो बजवा सकते है, लेकिन अपनी अपील से हिंसा नहीं रुकवा सकते।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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