राकेश अचल। डॉ. सोनम वांगचुक एनएसए के तहत गिरफ्तारी के बाद राजस्थान की जोधपुर जेल भेजे गए हैं। सोनम के लिए लेह, लद्दाख की कोई जेल शायद बनी ही नहीं है। इस देश में अब ये प्रमाणित हो गया है कि सरकार दमन पर उतर आई है और उसे अब किसी भी तरह की असहमति और आंदोलन से डर लगने लगा है।
सोनम को लद्दाख में हिंसा के बाद गिरफ्तार किया गया। आंदोलन के नेपाली स्वरूप को देख दिल्ली को सोनम अचानक काल नजर आने लगे। आनन फानन में उन्हें लेह लद्दाख के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे मुल्क के लिए खतरा मानकर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। उनके पीछे ईडी, सीबीआई और आईटी को शिकारी कूकरों की तरह लगा दिया गया। सोनम लद्दाख की जनता को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल कराने की मांग को लेकर अनशन कर रहे थे। अनशन महात्मा गांधी का दिया एक अहिंसक राजनीतिक उपकरण है। इसके जरिए तमाम उपलब्धियां हासिल की गई हैं, लेकिन लगता है हमारी सरकार को न अनशन का महत्व पता है और न सत्याग्रह का। सरकार इन दोनों तरीकों को खतरनाक मानती है, क्योंकि उसे पता है कि अनशन, सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन के सामने अंग्रेजी सत्ता नहीं टिकी तो वोट चोरी से बनी मोदी जी की सत्ता कैसे बच सकती है ?
हकीकत ये है कि आज सत्ता में काबिज भाजपा ने न स्वतंत्रता के पहले महात्मा गांधी के उपकरणों का इस्तेमाल किया और न स्वतंत्रता के बाद। इसीलिए भाजपा को, भाजपा के नेताओं को ये तमाम गांधीवादी उपकरण घातक लगते हैं। सरकार गांधी जी के इन हथियारों को संघातक मानती है। सरकार का डर ही सोनम से पहले आम आदमी पार्टी के विधायक मेहराज को गिरफ्तार कर लेता है। केंद्र सरकार को सत्याग्रह से बड़ा हथियार सत्ता लगती है, जबकि पिछले ढाई साल सत्ता को असहाय, नाकारा प्रमाणित कर चुके हैं। मणिपुर राख हो चुका है। मणिपुर से भी जनता की सरकार छीन ली गई है, जैसे लेह लद्दाख से उसके राज्य का दर्जा। जैसे स्वायत्तता का अधिकार। दिल्ली हर असहमति को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानकर उसे अपने बूटों से कुचल देना चाहती है। दिल्ली बौरा गई है। कभी-कभी हमें लगता है कि भारत में असहमति के लिए कोई ठौर बचा ही नहीं है। यदि होता तो जन आंदोलनों के प्रति सरकार का जो रवैया है, वो नहीं होता। सरकार जबरन पूरे देश को एक रंग में रंग देना चाहती है। ये सरकार अंग्रेजों की नहीं रंगरेजों की सरकार है, लेकिन सरकार न मणिपुर को भगवा रंग में रंग पाई न लेह, लद्दाख और जम्मू कश्मीर को। न केरल को, न आंध्र को। लंबी फेहरिस्त है जहां रंगरेजों की दाल नहीं गली।
हम लेह लद्दाख से बहुत दूर बैठे हैं, लेकिन साफ देख पा रहे हैं कि सरकार अपने पड़ोसियों की गलतियों से भी सबक नहीं ले रही। सबक लेती तो आज के नए मानवाधिकार इंटरनेट को बंद नहीं करती। नेपाल के जेन जी का विद्रोह आखिर इसी पाबंदी की वजह से हुआ। भारत सरकार जनांदोलनों को कुचलकर अपने आपको सुरक्षित कर लेना चाहती है, जो मुमकिन नहीं है। सरकार एक सोनम वांगचुक को गिरफ्तार कर दस नए सोनम पैदा कर रही है। सोनम वांगचुक के पिता किसी रेलवे स्टेशन पर चाय बेचकर सत्याग्रह करना नहीं सीखे। सोनम के पिता को ये अहिंसक और गांधीवादी अस्त्र विरासत में मिले है। सोनम को सत्ता का लोभ होता तो वो कब का अपने पिता की तरह मंत्री बन चुका होता। सोनम को अडानी, अंबानी बनना होता तो वो दिल्ली से पंगा न लेता। दिल्ली सोनम को कुचलना चाहती है। तोड़ना चाहती है। ब्लैकमेल करना चाहती है, लेकिन हम विश्वासपूर्वक कहते हैं कि केंद्र सोनम को जोधपुर की जेल में रखे या अंडमान की जेल में, सोनम को तोड़ नहीं पाएगी।
बहरहाल चौतरफा असंतोष, असम्मान, अविश्वास से घिरी केंद्र सरकार ने सोनम को अकारण गिरफ्तार कर उसके खिलाफ जांचें बैठाकर आत्मघाती कदम उठाया है। अभी भी वक्त है कि दिल्ली भूल सुधार कर ले। सोनम को बिना शर्त रिहा करे। उसके साथ वार्ता की टेबिल पर बैठे। लद्दाख, लेह की जनता की मांगो को तत्काल स्वीकार करे। अन्यथा सोनम का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, लेकिन सोनम पर हमलावर सरकार मुंह की जरूर खाएगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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