राकेश अचल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अपनी सरकार की दूसरी सालगिरह 12 दिसंबर 2025 को भले ही मना लें, लेकिन पिछले 21 महीने में उनका ज्यादातर समय तोते लड़ाते हुए बीता है। एक मुख्यमंत्री के रूप में अभी भी अपनी धाक जमाने में वे कामयाब नहीं हो पाए हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इक्कीस महीने पहले जिस बोझिल वातावरण में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, उसमें सुधार होने के बजाए कड़वाहट और बढ़ गई है। वो तो भला हो पार्टी हाईकमान का जो वे अब तक पद पर बने हुए हैं, अन्यथा संगी-साथी तो कब की नाव डुबो चुके होते ? पिछले इक्कीस महीने की सबसे बड़ी उपलब्धि यदि डॉ. यादव के पास है तो ये कि वे इस अवधि में (13 दिसंबर 2023 से 29 सितंबर 2025) तक प्रधानमंत्री मोदी को मध्यप्रदेश में 8 बार लेकर आए। इस अवधि में मुख्यमंत्री बनने का सपना टूटते देखने वाले केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, फग्गन सिह कुलस्ते, मोहन कैबिनेट में मन मारकर शामिल हुए प्रहलाद सिंह पटेल और कैलाश विजयवर्गीय ही नहीं विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर भी करवटें बदलते नजर आ रहे हैं।
हमने जिन नेताओं का जिक्र किया उनके अपने अपने गुट हैं। किसी के पास 10 विधायक हैं तो किसी के पास 60 विधायक, लेकिन इनमें से फिलहाल एक भी नेता डॉ. मोहन यादव की सरकार को अस्थिर करने की स्थिति में नहीं हैं। सब अपना झुनझुना बजाकर मुख्यमंत्री मोहन यादव की नींद हराम किए हुए हैं। ये दशा न शिवराज सिंह चौहान की थी न बाबूलाल गौर और उमा भारती की। शिवराज सरकार को तो महाराज सरकार (जो उनकी थी ही नहीं) ने अपदस्थ किया था और महाराज सरकार ने ही शिवराज को दोबारा मुख्यमंत्री बनवाया था। शिवराज को इस बार भी मुख्यमंत्री बनना था, लेकिन महाराज सरकार उनकी कोई मदद कर नहीं सकी। मौजूदा स्थिति ये है कि मोहन सरकार भी महाराज सरकार पर आंशिक रूप से आश्रित है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को इस समय महाराज सरकार, दिमनी सरकार, बुधनी सरकार के साथ ही पटेल और विजयवर्गीय सरकार के बीच संतुलन बनाए रखने में छठी का दूध याद आ रहा है। महाराज सरकार ने तो बाकायदा मंत्रिमंडल की बैठक में अपने तेवर दिखाना शुरू कर दिए हैं। दिमनी सरकार के प्रतिनिधि ग्वालियर के सांसद महाराज सरकार को आंखें दिखाते रहते हैं। बुधनी सरकार भी किसानों की तरफदारी का स्वांग कर डॉ. मोहन यादव को चैन से रहने नहीं दे रही।
सूत्रों का कहना कि मुख्यमंत्री पद के लिए लार टपका रहे मप्र भाजपा के तमाम ज्ञात, अज्ञात नेता 13 दिसंबर 2025 से पहले डॉ. मोहन यादव को खो देना चाहते हैं। मुख्यमंत्री पद का सपना पाले बैठे एक टिनोपाल नेता इस समय अलग-थलग अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे हैं। उन्हें न भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और न कोई दूसरा काम दिया गया। कुल जमा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव चौतरफा भयादोहन के शिकार हैं। इस कारण वे न अपनी स्वतंत्र छवि बना सके और न सरकार पर अपनी छाप छोड़ सके। हमें कभी-कभी डॉ. मोहन यादव पर बड़ी दया आती है। वे न कमलनाथ की तरह महाराज को झिड़क पा रहे हैं और न शिवराज की तरह जुगलबंदी कर पा रहे हैं। उनके एक हाथ पर देशी तोता है तो दूसरे पर मकाऊ। तीतर-बटेर को तो आपस में लड़ाया भी जा सकता है और पकाया, खाया भी जा सकता है, लेकिन तोते सबसे अलग हैं। उनकी गागरौनी अलग है। वे जब तक हाथ पर बैठे हैं तभी तक काम के हैं, वे जिस दिन उड़े उसी दिन कुरसी भी जा सकती है।
डॉ. मोहन यादव के पास अभी अपनी कुरसी के पाए मजबूत बनाने के लिए 74 दिन और हैं। वे इस अवधि का इस्तेमाल कैसे करते हैं ये वे जानें या उनके भगवान श्रीकृष्ण जी। हमारी तो शुभकामनाएं उनके साथ हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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