राकेश अचल। ओडिशा के कटक शहर में रविवार को भी माहौल तनावपूर्ण बना रहा। दुर्गा पूजा की मूर्ति विसर्जन के दौरान दो गुटों के बीच हिंसा भड़कने के महज कुछ घंटों बाद विश्व हिंदू परिषद ने 6 अक्टूबर को शहर में 12 घंटे का बंद का ऐलान किया है। प्रशासन ने 24 घंटे के लिए इंटरनेट सस्पेंड कर दिया। इंटरनेट शटडाउन की ये पहली घटना नहीं है। सरकारें अब इंटरनेट शटडाउन को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की आदी हो चुकी हैं।
कानून के एक सामान्य छात्र के रूप में मैं इतना जानता हूं कि इंटरनेट आम आदमी का संवैधानिक मौलिक अधिकार है। इसे छीना या सीमित किया जाना अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है, लेकिन सरकारों को इसकी फिक्र कहां ? वे तो हर छोटे-मोटे आंदोलन को कुचलने के लिए सबसे पहले इंटरनेट शट डाउन करती हैं, क्योंकि इंटरनेट आम जनता की सबसे सशक्त आवाज है। भारत में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 19 के तहत इंटरनेट तक पहुंच को मौलिक अधिकार घोषित किया है। यह अधिकार बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है, लेकिन इस पर कुछ उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं जो आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करते हुए तय किए जाते हैं। हमें याद है कि अनुराधा भसीन केस में 10 जनवरी 2020 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इंटरनेट तक पहुंच को एक मौलिक अधिकार माना था। यह फैसला संयुक्त राष्ट्र की उस सिफारिश के अनुरूप भी है, जिसमें सभी देशों से इंटरनेट को मौलिक अधिकार घोषित करने का आग्रह किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार इंटरनेट पर तब कोई प्रतिबंध लगा सकती है, बशर्ते कि वह आनुपातिकता के परीक्षण से गुजरता हो। अर्थात कोई भी प्रतिबंध वैध, आवश्यक और उस स्थिति के अनुपात में होना चाहिए जिसका वह सामना कर रहा है। दुनिया में इंटरनेट तक पहुंच का अधिकार लोगों को जानकारी प्राप्त करने, अपनी बात रखने और विभिन्न प्रकार के ऑनलाइन व्यवसाय करने का अधिकार देता है। इंटरनेट शिक्षा, सामाजिक समानता, और गरीबी उन्मूलन जैसे महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी मदद करता है।
पिछले दिनों नेपाल में जेन जी की हिंसक क्रांति के बाद से सरकार इंटरनेट के जरिए जनता का गला घोंटने को स्थिति नियंत्रित करने का अमोघ अस्त्र समझने लगी है। उड़ीसा से पहले लेह-लद्दाख में इंटरनेट का गला घोंटा जा चुका है। भारत में इंटरनेट शटडाउन के मामलों की संख्या साल दर साल बदलती रहती है। खोजबीन की तो पता चला कि वर्ष 2023 में 116 बार शटडाउन हुए, हालांकि 2024 में यह संख्या घटकर 84 रही। फिर भी भारत में लोकतांत्रिक देशों की तुलना में शटडाउन की संख्या अधिक है। 2024 में ये कुल 84 शट डाउन 16 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू हुए। वर्ष 2024 में भारत के इंटरनेट शटडाउन वैश्विक स्तर पर हुए कुल 296 शटडाउन का 28 प्रतिशत थे। 2024 में हुए 84 शटडाउन में से 41 विरोध प्रदर्शनों से संबंधित थे। 23 सांप्रदायिक हिंसा के कारण हुए थे। सरकारी नौकरी की परीक्षाओं के दौरान पांच बार इंटरनेट शटडाउन किया गया। 2024 में मणिपुर में 21 बार शटडाउन हुए, जो सबसे अधिक संख्या है। उसके बाद हरियाणा में। जम्मू-कश्मीर में भी इंटरनेट प्रतिबंध लागू किए गए। उत्तर प्रदेश के बरेली, संबल के अलावा भद्रक, मुर्शिदाबाद में तो आए दिन इंटरनेट का गला घोंटा गया। इंटरनेट पाबंदी से सिर्फ सोशल मीडिया पर रोक नहीं लगती, उसके साथ ही अन्य आर्थिक, व्यापारिक, शैक्षणिक, गतिविधियों पर भी रोक लगती है। इंटरनेट पर रोक से प्रशासन, शासन को फौरी मदद तो मिलती है, लेकिन जनता का नुकसान व्यापक पैमाने पर होता है।
उड़ीसा में दुर्गा मूर्ति विसर्जन यात्रा के दौरान हुई झड़प से जुड़ी हिंसा की ताजा घटनाओं के बाद रविवार को कटक में तनाव बना रहा। विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने दुर्गा मूर्ति विसर्जन यात्रा के दौरान हुई झड़प के विरोध में 6 अक्टूबर (सोमवार) को शहर में 12 घंटे के बंद का आह्वान किया है। पुलिस ने बताया कि शनिवार देर रात 1:30 से 2 बजे के बीच दरगाह बाजार क्षेत्र में हाथी पोखरी के पास झड़प उस समय हुई, जब विसर्जन यात्रा कथाजोड़ी नदी के तट पर देबीगारा की ओर बढ़ रही थी। अधिकारियों के अनुसार हिंसा तब भड़की जब कुछ स्थानीय लोगों ने विसर्जन यात्रा के दौरान तेज आवाज में संगीत बजाने पर आपत्ति जताई। अधिकारियों के अनुसार बहस जल्द ही टकराव में बदल गई। मौजूदा कानून एवं व्यवस्था की स्थिति के मद्देनजर राज्य सरकार ने गलत सूचना के प्रसार को रोकने के लिए कटक नगर निगम, कटक विकास प्राधिकरण (सीडीए) और आसपास के 42 मौजा क्षेत्र में रविवार शाम 7 बजे से सोमवार शाम 7 बजे तक इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया। अधिकारियों के अनुसार, पुलिस द्वारा जुलूस रोकने के बाद मार्ग पर लगे सीसीटीवी कैमरे क्षतिग्रस्त कर दिए गए और गौरीशंकर पार्क क्षेत्र की दुकानों में कथित तौर पर आग लगा दी गई।
ज्वलंत सवाल ये है कि इंटरनेट पर पाबंदी के अधिकार का दुरुपयोग सत्ता प्रतिष्ठान आखिर कब तक करते रहेंगे ? क्या सर्वोच्च न्यायालय इस पर स्वतः संज्ञान लेगा या ये तानाशाही यूं ही चलती रहेगी। मतलब इंटरनेट गरीब की जोरु बना रहेगा। नेटलास ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि 2023 की पहली छमाही में भारत में इंटरनेट बंद होने से 1.9 बिलियन डॉलर यानी करीब 15,590 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इस अवधि में मणिपुर और पंजाब में सबसे ज्यादा इंटरनेट बंद रहा है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
27 Years Experience Of Journlism





