राकेश अचल। ‘सूत न कपास और जुलाहों में लठ्ठम लठ्ठ’ की कहावत आपने सुनी होगी। यही देश में जगह-जगह हो रहा है। कोई ‘आई लव मोहम्मद’ कहकर फिजा बिगाड़ रहा है तो कोई ‘आई हेट अंबेडकर’ कहकर फिजा में जहर घोल रहा है। दोनों का मकसद एक ही है कि जैसे भी हो समाज का अमन चैन खराब हो। अब ग्वालियर को बरेली बनाने की कोशिश की जा रही है।
उत्तर प्रदेश के बरेली से उठी नफरत की ये लपटें दिल्ली से होती हुई हमारे मकबूल, महबूब शहर ग्वालियर तक आ पहुंची हैं। यहां कोई तौकीर रजा नहीं है, लेकिन यहां कोई राकेश किशोर नाम का हम पेशा वकील है। बरेली में मुसलमान बनाम हिंदू चला तो हमारे ग्वालियर में हिंदू बनाम दलित के नाम पर नफरत की आग सुलगाई जा रही है। प्रदर्शन हो रहे हैं, रास्ते रोके जा रहे हैं। कोशिश है कि एक बार ग्वालियर भी बरेली की तरह जल उठे। दिल्ली में एक वकील ने अपने सनातनी होने का प्रमाण देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई पर जूता उछालकर सुर्खियां बटोरी तो ग्वालियर में एक वकील डॉ. भीमराव अंबेडकर को खलनायक कहकर दलितों को आंदोलित करने का अभियान चलाए हुए हैं। दुर्भाग्य ये है कि ग्वालियर में अंबेडकर को गरियाने वाले वकील साहब के साथ ग्वालियर की तमाम वकील बिरादरी भी है, जबकि दिल्ली में ऐसा नहीं हुआ। ग्वालियर अपेक्षाकृत देश का शांत शहर है, लेकिन इसे अशांत करने की कोशिश की जा रही है। एक तरफ शाखा मृग और सनातनी हैं और दूसरी तरफ अंबेडकरवादी। दोनों शक्ति प्रदर्शन की कोशिश कर रहे हैं। गनीमत ये है कि ग्वालियर की पुलिस और प्रशासन इन दोनों में से किसी के साथ नहीं है। पुलिस और प्रशासन अभी शहर के साथ है। यदि पुलिस और प्रशासन भी बाबा की पुलिस बन जाए तो ग्वालियर को बरेली बनने में ज्यादा देर नहीं लगेगी।
मैं आधी सदी से ज्यादा वक्त से ग्वालियर की आबो हवा का साक्षी हूं। यहां हमेशा पुलिस और प्रशासन ने हिकमत अमली से काम लिया है। दशकों पहले भाजपा के साथी वकील राम जेठमलानी ने अपने बयान से ग्वालियर को अशांत करने की कोशिश की थी। तब हमारा हाईकोर्ट जयेंद्र गंज में होता था। उस समय भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने थे, लेकिन पुलिस ने टकराव नहीं होने दिया। दो दिन पहले ग्वालियर पुलिस और प्रशासन ने वकीलों और अंबेडकर वादियों के बीच टकराव को टालने में हिकमत अमली से काम लिया, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में समझदार वकील लगातार बचकानी हरकत कर रहे हैं। हमें लगता है कि लोग अब सुर्खियां बटोरने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। उन्हें न अपने शहर के अमनो अमान की फिक्र है और न अपने पेशे की पाकीजगी की। कानून उनके लिए खिलौना है। ये हरकतें कोई अनपढ़ व्यक्ति या समाज करे तो बात और है, लेकिन जो पढ़े लिखे लोग हैं वे ही यदि नासमझी का प्रमाण दें तो इस शहर का, सूबे का और मुल्क का मालिक ऊपर वाला ही हो सकता है। बेचारा ऊपर वाला भी नीचे वालों की हरकतों पर कब तक पर्दा डाले ?
कानून और व्यवस्था का मामला हो तो और बात है, लेकिन ये बात तो सीधे- सीधे नफरत से जुड़ी है। ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा’ का नारा लगाने वाले लोग लगातार कम हो रहे हैं। पहले इस देश की जहरीली सियासत ने हिंदू को मुसलमान से लड़ाया और अब हिंदू को दलितों से लड़वाने की कोशिश की जा रही है। क्या इसी टकराव के लिए हम आजाद हुए थे ? क्या इसी टकराव के लिए हमने संविधान गढ़ा था ? भारत में चाहे कोई तौकीर हो चाहे कोई अनिल या राकेश किसी को भी वैमनस्य फैलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। ये केवल पुलिस और प्रशासन की ही नहीं, बल्कि हर शहरी की जिम्मेदारी भी है कि वो ऐसे तत्वों को हतोत्साहित करें। ग्वालियर को बरेली न बनने दें।
डॉ. अंबेडकर के विरोध और समर्थन की राजनीति से ग्वालियर का नाम नहीं हो रहा, उलटे बदनामी हो रही है। इसीलिए हमारी सभी पक्षों से अपील है कि वे विवेक का इस्तेमाल करें। तिल का ताड़ न बनाएं। शहर को जितनी परेशानी परशुराम की सेना से है उतनी ही भीम आर्मी से भी। लोकतंत्र में इन दोनों के लिए कोई स्थान नही है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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