राकेश अचल। हरियाणा में आईपीएस अधिकारी की आत्महत्या और मध्यप्रदेश में एक महिला डीएसपी की लूट के मामले में गिरफ्तारी के बाद ये बहुत जरूरी हो गया है कि देश के पुलिस सिस्टम पर गंभीरता से न सिर्फ विचार किया जाए, बल्कि पुलिस रिफार्म की दिशा में तत्काल आवश्यक कदम उठाए जाएं।
कितने अफसोस की बात है कि आत्महत्या करने वाले हरियाणा कैडर के आईपीएस अफसर के शव का पोस्टमार्टम आठ दिन बाद हुआ। वो भी तब जब मृतक की पत्नी ने बुधवार सुबह पूरन कुमार के पोस्टमार्टम की लिखित इजाजत दे दी। इससे पहले मंगलवार को चंडीगढ़ पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए अदालत का रुख किया था। इस बात की इजाजत लेने के लिए कि चूंकि परिवार तैयार नहीं है, लिहाजा अदालत मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में पूरन कुमार के शव के पोस्टमार्टम की इजाजत दे। इससे पहले कि अदालत इस पर सुनवाई करती बुधवार सुबह पूरन कुमार की आईएएस पत्नी अमनीत पी कुमार ने चंडीगढ़ पुलिस को बाकायदा लिखित में पोस्टमार्टम कराने की इजाजत दे दी।
दूसरी तरफ रोहतक के साइबर सेल में तैनात एएसआई संदीप लाठर का शव अब पोस्टमार्टम का इंतजार कर रहा है। ठीक आईपीएस पूरन कुमार की तरह ही संदीप के परिवार वालों ने भी पोस्टमार्टम के लिए जरूरी इजाजत देने से इनकार कर दिया है। उनकी मांग है कि पहले संदीप की मौत की न्यायिक जांच हो और उन्होंने संदीप की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। संदीप के परिवार की ये भी मांग है कि संदीप ने मौत से पहले फाइनल नोट के साथ-साथ वीडियो के जरिए जो अपना आखिरी बयान दर्ज किया है, उस वीडियो बयान के आधार पर एफआईआर दर्ज की जाए। इस वीडियो में संदीप ने सीधे-सीधे आईपीएस वाई पूरन कुमार और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के इल्जाम लगाए हैं। संदीप लाठर ने दिवंगत पूरन कुमार को लेकर अपने आखिरी वीडियो में बहुत कुछ कहा है।
ये शायद देश का पहला और इकलौता मामला होगा जब एक सीनियर आईपीएस अफसर खुदकुशी करता है और उस अफसर की सीनियर आईएएस अफसर पत्नी पुलिस थाने में एक रिपोर्ट लिखाती है। इस रिपोर्ट में वो अपने आईपीएस पति की खुदकुशी के लिए राज्य के सबसे बड़े पुलिस अफसर यानि डीजीपी और एक एसपी की गिरफ्तारी की मांग करती है। खुदकुशी करने वाले आईपीएस अफसर वाई पूरन कुमार के सुसाइड नोट में उन्होंने कुल 15 आईएएस और आईपीएस अफसरों को अपनी मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया है। इनमें हरियाणा के मुख्य सचिव अनुराग रस्तोगी, डीजीपी शत्रुजीत कपूर, पूर्व मुख्य सचिव टीवीएसएन प्रसाद, पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव राजीव अरोड़ा, पूर्व डीजीपी मनोज यादव, पूर्व डीजीपी हरियाणा पीके अग्रवाल, संदीप खिरवार के अलावा 7 अन्य प्रशासनिक अफसरों के नाम शामिल हैं।
आपको बता दें कि चंडीगढ़ में अपने घर के बेसमेंट में रिक्लाइनर कुर्सी पर बैठकर 7 अक्टूबर की दोपहर हरियाणा कैडर के 2001 बैच के आईपीएस अफसर वाई पूरन कुमार ने खुद को गोली मारकर खुदकुशी की थी। उसी कमरे से 9 पन्नों का एक सुसाइड नोट मिला था। जाहिर है कि नौकरशाही में चल रही उठापटक से या तो हरियाणा के मुख्यमंत्री मुंह चुराते रहे या उन्हें इसकी खबर ही नहीं थी। इस तरह दोनों ही स्थितियां गंभीर हैं और ये इशारा कर रहीं हैं कि सिस्टम पंगु हो चुका है। किसी की बात कोई सुनने को तैयार नहीं है। मध्यप्रदेश में भी कमोवेश यही दशा है। यहां पुलिस हत्यारी और डकैत बन चुकी है। मप्र में गृह विभाग खुद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पास है। इसलिए यदि पुलिस की महिला डीएसपी गिरोह बनाकर डकैती करती है या पुलिस मालखाने का माल खा जाती है या चौथ न मिलने पर किसी निर्दोष को पीट पीटकर मार डालती है तो इसके लिए मुख्यमंत्री के अलावा किसी दूसरे पर दोष नहीं मढ़ा जा सकता। क्योंकि सिपाही से लेकर एसपी तक की पदस्थापना सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय से होती है।
ऐसी तमाम घटनाएं ये कह रही हैं कि केवल हरियाणा या मप्र की ही नहीं, बल्कि पूरे देश की पुलिस वर्दी वाले गुंडे का रूप ले चुकी है। इसलिए सिस्टम में तत्काल रिफार्म की जरुरत है। पुलिस रिफार्म केंद्र सरकार का मामला है। अब देखना है कि केंद्र पुलिस को सुधारती है या फिर उनका इस्तेमाल आरएसएस के स्वयं सेवकों की तरह ही करना चाहती है। उल्लेखनीय है कि भारत में अभी भी अंग्रेजो के बनाए गए अधिनियम से प्रेरित भारतीय पुलिस अधिनियम, 1861 ही वजूद में है। यह अधिनियम ब्रिटिश सरकार ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद लागू किया था। स्वतंत्र भारत में यह अधिनियम अभी भी कई राज्यों में लागू है, लेकिन कई राज्यों ने अपने नए पुलिस अधिनियम बनाए हैं। इनमें केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली, मप्र ने अपने पुलिस अधिनियम बनाए हैं।
पुलिस रिफार्म के लिए भी कई आयोग बने हैं, जिन्होंने 1861 के पुराने कानून को बदलने की सिफारिश की। इनमें राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977–1981), रिबेरो समिति (1998), पद्मनाभ समिति (2000), मालिमथ समिति (2003) के अलावा सुप्रीम कोर्ट के आदेश (2006, प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार) प्रमुख हैं। लेकिन अधिकांश राज्य अब भी 1861 के कानून या उसके संशोधित रूप का पालन कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने 2023 में “भारतीय न्याय संहिता”, “भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता” आदि नए कानून प्रस्तावित किए हैं, जिनसे पुलिस व्यवस्था पर भी असर पड़ेगा। सुना है कि एक नया ऑल इंडिया पुलिस अधिनियम लाने पर चर्चा चल रही है, लेकिन अभी तक ये लागू नहीं हुआ है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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