राकेश अचल। भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई आगामी 23 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं, लेकिन सरकार उन्हें मानसिक रूप से दबाव में लेने की कोशिश कर रही है। वहीं सीजेआई भी जाने से पहले कोई हाइड्रोजन बम फोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बहुचर्चित प्रेसीडेंशियल रिफ्रेंस के मामले में पीठ को बताया कि “2015 से 2025 तक देश के सभी राज्यपालों द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए कुल संदर्भों की संख्या 381 है, यदि इन सभी को अदालत में लाया गया तो उस पर निर्णय लेने के लिए स्थायी रूप से दो अलग-अलग पीठ बनानी होंगी”।
देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ 17 अक्टूबर को तमिलनाडु सरकार की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्यपाल द्वारा तमिलनाडु शारीरिक शिक्षा एवं खेल विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2025 को मंजूरी देने के बजाए उसे राष्ट्रपति के पास भेजने के उनके फैसले को चुनौती दी गई थी। तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि “गवर्नर ऐसा नहीं कर सकते हैं। वह विधेयक को मंजूरी देने के बजाए उसे राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते हैं”। इस पर मुख्य न्यायाधीश गवई ने सिंघवी से कहा कि “इस याचिका पर निर्णय के लिए राष्ट्रपति के संदर्भ पर आने वाले फैसले तक इंतजार करें”। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि “इस मुद्दे पर संविधान पीठ के फैसले के बाद ही सुनवाई की जाएगी”। सुनवाई के दौरान सिंघवी ने कहा कि “चूंकि गवर्नर ने बिल को राष्ट्रपति के पास भेज दिया है, ऐसे में यदि अब राष्ट्रपति कुछ करते हैं तो क्या होगा” ? इस पर जस्टिस गवई ने कहा ‘‘अभी तो हम लोग कोई आदेश पारित नहीं करेंगे। आपको राष्ट्रपति के संदर्भ पर फैसले आने तक इंतजार करना होगा। आपको मुश्किल से चार सप्ताह और इंतजार करना होगा। संदर्भ पर 21 नवंबर से पहले निर्णय ले लिया जाएगा”।
दरअसल 21 नवंबर को मौजूदा जस्टिस बीआर गवई का अंतिम कार्य दिवस होगा। वह 23 नवंबर को इस पद से रिटायर हो रहे हैं। इसी का हवाला देते हुए उन्होंने सिंघवी से कहा कि आपको थोड़ा इंतजार करना होगा। हालांकि कितने दिन का इंतजार करना होगा ? उस पर खुद ही टाइमलाइन तय कर दी और इशारा किया कि रिटायर होने से पहले ही राष्ट्रपति के संदर्भ मामले पर फैसला सुनाकर विदा होंगे। ये फैसला हाइड्रोजन बम होगा या हमेशा की तरह आधा अधूरा फैसला कहना कठिन है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की बहस के बीच वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी भी कूद पड़े। उन्होंने कहा “आज सवाल यह है कि क्या राज्यपाल एक न्यायाधीश की तरह हर खंड की जांच कर सकते हैं और कह सकते हैं कि यह सही है और यह गलत है ? यदि वे हर धारा और प्रावधान को सही-गलत के चश्मे से देखते हैं तो राज्यपालों को भी यहां अदालत में बैठना है”। इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि “राज्यपाल आज़ादी के बाद से ही ऐसा करते आ रहे हैं, यह उनका काम है”। जब बहस और बढ़ने लगी तो मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीच-बचाव में कूद पड़े और उन्होंने फिर कहा “बस 4 हफ्ते और रुकिए”। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रपति संदर्भ मामले में फैसला आने के बाद इस मामले को लिस्ट करने का आदेश दिया।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति संदर्भ पर 11 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। राष्ट्रपति संदर्भ में पूछा गया था कि “क्या एक संवैधानिक अदालत राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा निर्धारित कर सकती है”। तमिलनाडु सरकार ने शीर्ष अदालत में अपनी याचिका में कहा है कि “विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजने का राज्यपाल का कृत्य स्पष्ट रूप से असंवैधानिक, संविधान के अनुच्छेद 163 (1) और 200 का उल्लंघन है तथा प्रारंभ से ही अमान्य है”।
याचिका के अनुसार विधेयक को छह मई 2025 को राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था। साथ ही मुख्यमंत्री की सलाह भी थी कि इसे मंजूरी दी जाए। हालांकि 14 जुलाई को राज्यपाल ने यूजीसी विनियम, 2018 के खंड 7.3 के साथ कथित टकराव का हवाला देते हुए विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज दिया। जिस पर राज्य सरकार का कहना है कि यह कदम उनके संवैधानिक अधिकार क्षेत्र के बाहर है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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