राकेश अचल। राजनीति कितनी बेहया होती है इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं है। राजनीति सिर्फ जोड़ती ही नहीं, बल्कि तोड़ती भी है। राजनीति पार्टी, समाज यहां तक कि परिवार तक तोड़ सकती है। राजनीति के जहर का असर इस समय बिहार के लालू यादव परिवार पर सबसे ज्यादा पड़ा है।
राजनीति ने अतीत में देश का सबसे बड़ा गांधी परिवार तोड़ा। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का परिवार इसी राजनीतिक जहर का शिकार हुआ। सबसे पहले इंदिरा गांधी की छोटी पुत्र वधु मेनका गांधी ने अलग रास्ता अपनाया, क्योंकि उन्हें इंदिरा गांधी की राजनीतिक विरासत से कथित तौर पर वंचित किया जा रहा था। मेनका ने कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंदी भाजपा का दामन थामा। उनका बेटा वरुण भी भाजपा में ही है। राजनीति ने उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह का कुनबा तोड़ा। बसपा की मायावती भी इस जहर से अपने परिवार को बचा नही सकीं। महाराष्ट्र में शरद पवार और बाला साहब ठाकरे का परिवार भी इसी राजनीतिक जहर का शिकार बना। दक्षिण में जयललिता, एनटी रामाराव, करुणानिधि का परिवार भी इस जहर से बच नहीं पाया। मध्यप्रदेश में दिग्विजय परिवार, सिंधिया परिवार इसी राजनीतिक विष की वजह से टूटता-जुड़ता रहा।
हाल ही में संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित हार के बाद राष्ट्रीय जनता दल के मालिक लालू यादव के परिवार को भी राजनीति के जहर ने अपनी लपेट में ले लिया है। लालू प्रसाद यादव के परिवार के अंदर का यह विवाद अब सड़क पर आ चुका है, जिसमें तेजस्वी यादव की टीम को सबसे बड़ा जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। पार्टी की सीटें 75 से घटकर 25 होने के बाद से ही माहौल तनावपूर्ण था, लेकिन 15 नवंबर को यह तनाव तीखी बहस में तब्दील गया।
ऐसी खबरें हैं कि लालू और राबड़ी देवी चुनाव अभियान में तेजस्वी की टीम के कामकाज से नाराज थे। चुनाव परिणाम आने के बाद स्थिति और बिगड़ गई। लालू की बेटी रोहिणी आचार्य ने अपने भाई तेजस्वी को सीधे तौर पर कहा कि उनकी हार के लिए संजय यादव और उनकी पूरी टीम जिम्मेदार है। तेजस्वी ने इस आरोप को खारिज किया, लेकिन विवाद यही नहीं थमा रोहिणी ने तेजस्वी पर आरोप लगाया कि वे पूरी तरह संजय यादव के इशारों पर चलते हैं और इसलिए हार की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर है। संजय के साले सुमित को तेजस्वी का निजी सहायक बनाए जाने पर भी रोहणी को ऐतराज़ है।
लालू के परिवार का माहौल इतना गर्म हो गया कि परिवार के सूत्रों के मुताबिक तेजस्वी ने गुस्से में रोहिणी पर चप्पल तक उठाने की कोशिश की। इस पर मीसा भारती ने बीच-बचाव किया। रोहिणी तुरंत घर छोड़ने लगीं, लेकिन राबड़ी देवी ने उन्हें रोक लिया। अगले दिन वह दिल्ली चली गईं। चुनाव के एक दिन बाद रोहिणी ने सोशल मीडिया पर भावुक संदेश लिखकर राजनीति और परिवार से दूरी बनाने का एलान कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें गालियां दी गईं, अपमानित किया गया और चप्पल से मारने तक की कोशिश हुई। उन्होंने लिखा ‘एक बेटी, एक बहन, एक मां को कल अपमानित किया गया। मेरे आत्म सम्मान को कुचलने की कोशिश हुई। मैंने अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं किया, मैंने सच्चाई का त्याग नहीं किया और सिर्फ़ इसी वजह से मुझे यह अपमान सहना पड़ा’। डॉक्टर रोहिणी आचार्य ने पिछले साल सारण लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और हार गईं थीं। राजद सांसद संजय यादव और उत्तर प्रदेश के एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखने वाले रमीज ने उनके आरोपों पर चुप्पी साध रखी है। वे अपने पति के साथ सिंगापुर में रह रहीं थीं।
आपको याद होगा कि तेजस्वी के बड़े भाई तेज प्रताप शुरू से ही संजय यादव का विरोध कर रहे थे। उन्होंने कई मौकों पर संजय को जयचंद भी कहा। तेज प्रताप शुरू से कहते आ रहे हैं कि संजय यादव की वजह से राजद की दुर्गति होगी और ऐसा हुआ भी। उन्होंने अपने बयानों से कई बार ये जताया कि जब तक तेजस्वी यादव के आस-पास संजय यादव जैसे लोग रहेंगे पार्टी का भला नहीं हो सकता। इस विवाद के बाद तेज प्रताप को परिवार और राजद से निकाल दिया गया था।
राजनीति के इस विद्रुप प्रसंग में भाजपा की खासी रुचि है। भाजपा ने राजद और लालू परिवार पर फिकरेबाजी करते हुए कहा कि यह ‘महिला विरोधी और पितृ सत्तात्मक मानसिकता’ का उदाहरण है। भाजपा नेता अमित मालवीय ने कहा ‘रोहिणी ने अपने पिता की जान बचाने के लिए किडनी दी, लेकिन लालू ने बेटे को तरजीह दी और बेटी का सम्मान नहीं किया। यह लालू परिवार का असली चेहरा है’। राजनीति का ये जहर आने वाले दिनों में और कितने परिवारों की बलि लेगा कहना मुश्किल है, लेकिन एक बात तय है कि राजनीति सुधा ही नहीं है, गरल भी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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