राकेश अचल। सीजेआई गवई की मां कमला ताई गवई ने आरएसएस शताब्दी समारोह में शामिल होने से इनकार कर न सिर्फ अपने दिवंगत पति की बल्कि अपने बेटे मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई की लाज रख ली। आरएसएस ने कमला ताई को संघ के शताब्दी समारोह में बहुत सोच विचार कर आमंत्रित किया था।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई की मां कमला ताई ने कहा कि “कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनने का निमंत्रण मिलने के बाद उन पर और उनके दिवंगत पति पर आरोप लगाए गए, जिससे वे आहत हुईं”। कमला ताई ने स्पष्ट किया कि “वे जीवनभर अंबेडकरवादी विचारधारा पर अडिग रहीं और विवाद से बचने के लिए समारोह में न जाने का निर्णय लिया”। संघ का शताब्दी समारोह भी मना और संघ का सिक्का देशी सियासत पर चलाने के लिए भारत सरकार ने एक सिक्का भी जारी किया, लेकिन संघ का सिक्का पूरी तरह से चल नहीं पा रहा। दुनिया के किसी भी बाजार में खोटे सिक्के चलते भी नहीं हैं, हालांकि कोशिश जरुर होती है।
बात मां कमला ताई गवई की हो रही थी। उन्होंने एक खुले पत्र में कहा कि उन पर लगे आरोपों व बदनामी के कारण उन्होंने महाराष्ट्र के अमरावती में होने वाले कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल नहीं होने का फैसला किया। कुछ लोगों ने उन्हें 5 अक्टूबर के कार्यक्रम में आमंत्रित किया था। चूंकि वह सभी के लिए शुभकामनाएं रखती हैं, इसलिए वह सभी का स्वागत करती हैं। कमला ताई गवई ने पत्र में आगे लिखा कि जैसे ही कार्यक्रम की खबर प्रकाशित हुई, कई लोगों ने न केवल मेरी, बल्कि मेरे पति स्वर्गीय दादासाहेब गवई की भी आलोचना और आरोप लगाना शुरू कर दिया। कमला ताई के पति आरएस गवई बिहार के पूर्व राज्यपाल रह चुके हैं। कमला ताई ने कहा कि हमने (डॉ. बीआर) आंबेडकर की विचारधारा के अनुसार अपना जीवन जिया है, जबकि दादासाहेब गवई ने अपना जीवन आंबेडकरवादी आंदोलन को समर्पित कर दिया था। अलग विचारधारा के मंच पर अपनी विचारधारा साझा करना भी जरूरी है, जिसके लिए साहस की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि उनके पति जानबूझकर विपरीत विचारधारा वाले संगठनों के कार्यक्रमों में शामिल होते थे और वंचित वर्गों के मुद्दे उठाते थे। उन्होंने कहा कि वह आरएसएस के कार्यक्रमों में शामिल होते थे, लेकिन उन्होंने कभी उसके हिंदुत्व को स्वीकार नहीं किया। मां कमला ताई गवई ने लिखा “यदि मैं मंच पर होती (5 अक्टूबर के आरएसएस समारोह में) तो मैं अंबेडकरवादी विचारधारा को सामने रखती, लेकिन जब उन्हें और उनके दिवंगत पति को आरोपों का सामना करना पड़ा और एक कार्यक्रम के कारण उन्हें बदनाम करने की कोशिश की गई, तो उन्हें बहुत दुख हुआ और उन्होंने संघ के कार्यक्रम में शामिल न होने का निर्णय लेकर इन सब बातों को समाप्त करने का निर्णय लिया”।
कमला ताई यदि संघ के शताब्दी समारोह में चली जातीं तो संघ की भ्रम पैदा करने की रणनीति कामयाब हो जाती, लेकिन उनके बेटे को मुख्य न्यायाधीश के रूप में दो महीने काटना मुश्किल हो जाता। जस्टिस गवई को आने वाले दो महीनों में जो महत्वपूर्ण फैसले करना है वे सब सही होकर भी अविश्वसनीय हो जाते। कमला ताई ने बड़ी सूझबूझ से अपने पति की पहचान और बेटे के मान की रक्षा कर दिखाई। आपको याद दिला दें कि संघ इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को 7 जून 2018 को संघ मुख्यालय नागपुर ले जाने में कामयाब रहा था। हालांकि मुखर्जी ने भी संघ के मंच से वही ज्ञान दिया था जो एक कांग्रेसी दे सकता था। प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति, बहुलता, सहिष्णुता और विविधता पर जोर देते हुए कहा था कि किसी एक धर्म, भाषा या विचारधारा के आधार पर भारत को परिभाषित करना उसकी पहचान को कमजोर करेगा। उन्होंने कहा था कि धर्मनिरपेक्षता और समावेशन हमारे देश की आस्था का अंग हैं और उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा था कि हमारी राष्ट्रीयता संविधान से उपजी है और हमें संविधान की अपेक्षाओं के अनुरूप आगे बढ़ना चाहिए। मुखर्जी ने संघ को असहिष्णुता, कट्टरता और हिंसा के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा था कि सार्वजनिक विमर्श को शारीरिक और मौखिक हिंसा से मुक्त करना चाहिए और मतभेदों को संवाद के माध्यम से सुलझाना चाहिए।
बहरहाल अब 5 अक्टूबर को संघ कमला ताई की जगह किसे मुख्य अतिथि बनाएगा ये संघ जाने, लेकिन कमला ताई ने संघ की साजिश को जिस ढंग से विफल किया है उसकी सराहना जरूर की जाना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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