राकेश अचल। आधे-अधूरे फैसले देने के कीर्तिमान बना रही हमारी न्यायपालिका को आत्मबोध हो गया है कि एसआईआर जैसे अति विवादित मामलों में हस्तक्षेप करना उसका काम नहीं है। बीते रोज जब सुप्रीम कोर्ट इजलास में जूता उछाले जाने से अपमानित हुए बिना याचिकाओं की सुनवाई करने में लगा हुआ था, तभी हमें अहसास हो गया था कि अब सुप्रीम कोर्ट एसआईआर के मामले से हाथ खींचने वाला है। क्योंकि अदालत इस समय अपमान का घूंट पीकर भी निष्पक्ष दिखाई दे रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को साफ कर दिया कि देशभर में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के जरिए वोटर लिस्ट की सफाई में वह दखल नहीं देगा। यह चुनाव आयोग का पूर्ण अधिकार है। जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा “ये पूरी तरह से चुनाव आयोग का विशेषाधिकार है”। माननीय सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने देश में चल रहे उस विपक्षी अभियान पर पानी फेर दिया, जो एसआईआर के जरिए वोट चोरी के खिलाफ चल रहा था। इस मामले में यूपीए गठबंधन की उस मेहनत पर भी धूल पड़ गई है जो उसने वोट अधिकार यात्रा के जरिए देश में चुनाव प्रक्रिया की खामियों को लेकर शुरू की थी। अब विपक्ष को वोट चोरी के खिलाफ नई रणनीति बनाना पड़ेगी, अन्यथा केंचुआ कुछ भी कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान बेंच ने याचिकाकर्ताओं से तीखा सवाल पूछा “आप चाहते क्या हैं ? कोर्ट सारी जिम्मेदारी ले ले” ? कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी भी की “भारत में कुछ लोग अवैध रूप से रह रहे हैं, उन्हें डर है कि उनकी पोल खुल जाएगी”। यानी एसआईआर के जरिए अवैध वोटरों को हटाने की प्रक्रिया को भी कोर्ट ने परोक्ष रूप से जायज मान लिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे कम से कम 100 ऐसे लोगों की लिस्ट दें, जिन्हें बिना नोटिस के वोटर लिस्ट से हटाया गया और वे अपील करना चाहते हैं। बेंच ने सवाल उठाया “हम ये सब किसके लिए कर रहे हैं ? लोग सामने क्यों नहीं आ रहे” ? माननीय सुप्रीम कोर्ट के इस रुख से बिहार विधानसभा चुनाव तो बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं होंगे, लेकिन बंगाल सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए ये सबसे बड़ा झटका है। टीएमसी ने भी बंगाल में एसआईआर के जरिए मुस्लिम वोटरों को टारगेट करने का आरोप लगाया था। ममता ने जुलाई में कहा था “एसआईआर के नाम पर वोटरों को डराया जा रहा है”।
बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले एसआईआर लागू होने पर टीएमसी का वोट बैंक प्रभावित हो सकता है, क्योंकि कई सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक हैं। केंद्र सरकार का असल मकसद भी सत्तारूढ तृणमूल कांग्रेस के इसी जनाधार को समाप्त करना है। कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि वो बिहार में 3.66 लाख वोटर रद्द करने और 21 लाख जोड़ने का डेटा जमा करे और एक नोट तैयार करे। अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी। आपको याद दिला दें कि इस मामले की मुख्य याचिका एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी। एडीआर की लिखित रिट पिटिशन 4 जुलाई 2025 को दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं की सुनवाई 10 जुलाई 2025 को शुरू करने के लिए सूचीबद्ध किया था। अदालत ने हालिया सुनवाई में चुनाव आयोग से 3.66 लाख मतदाताओं के नामों के बारे में विवरण मांगा है। अगली सुनवाई 9 अक्टूबर 2025 को होगी, लेकिन अब इस सुनवाई का कोई महत्व नहीं रह गया। क्योंकि अब केंचुआ का मनोबल तो बढ़ ही चुका है। सरकार के लिए भी अदालत का रुख मन माफिक है। सरकार तो शुरू से ही नहीं चाहती थी कि माननीय सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल दे।
देश की सुप्रीम कोर्ट सचमुच सुप्रीम है। इसे लेकर कोई कुछ नहीं कह सकता। कोई माननीय अदालत में जूते फेंके या वोट चोरी की शिकायत करे। ये अदालत की दृष्टि है कि वो किस मामले में दखल दे और किस मामले को छोड़ दे, क्योंकि देश की अदालतें जन भावनाओं से नहीं कानून से चलती हैं। अब यदि माननीय अदालत को लगता है कि उसे केंचुआ के कामकाज में दखल नहीं देना चाहिए तो इसके खिलाफ अपील केवल जनता की अदालत में ही की जा सकती है। विपक्ष को माननीय अदालत के निर्णय को शिरोधार्य करते हुए जनता की अदालत में ही अपील करना चाहिए। वहीं असली न्याय होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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