राकेश अचल। म्यांमार में धरती कांपी तो डेढ़ सौ से ज्यादा लोग मौत का शिकार हो गए और हजारों लोग घायल हो गए, दूसरी तरफ दुनिया ने 29 मार्च को साल के पहले सूर्यग्रहण का सामना किया। कहीं सूरज हांफता नजर आया तो कहीं इसके दर्शन नहीं हुए। भारत में सूर्य ग्रहण नजर नहीं आया, आता भी कैसे यहां तो सूर्य को ग्रहण लगे एक दशक से ज्यादा बीत चुका है। प्रकृति में हो रही इस हलचल के बारे में हम कुछ सोच नहीं पा रहे हैं, क्योंकि हमारे सामने जेरे बहस दूसरे मुद्दे हैं।
भूकंप को पुरबिया भू-डोल कहते है। दो फीसदी से ज्यादा लोग इसे ‘अर्थक्वेक’ कहते हैं क्योंकि उन्हें हिंदी नहीं आती या हिंदी बोलने में तकलीफ होती है, लेकिन बहस का मुद्दा भाषा नहीं आपदा है। म्यांमार में आए भूकंप से हुई तबाही हृदय विदारक है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है कहना कठिन है। हम क्या कोई दावे के साथ नहीं कह सकता कि ये भूकंप क्यों आया या ये सूर्य ग्रहण क्यों लगा ? इस बारे में विज्ञान की अपनी परिभाषाएं हैं और इन्हीं पर हम भरोसा करते आए है। हमारे पास भूकंप की आहट सुनने की मशीने है। भूकंप की तीव्रता को झेलने वाली तकनीक भी है, लेकिन सब असफल साबित होती है। जनहानि भी करता है भूकंप और धनहानि भी।
म्यांमार में शुक्रवार को आए तेज भूकंप से भीषण तबाही हुई है। इस आपदा से अब तक 140 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 700 से ज्यादा घायल बताए जा रहे हैं। भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.7 रही, जिसका असर पड़ोसी देश थाईलैंड में भी देखने को मिला है। राजधानी बैंकॉक की एक 30 मंजिला निर्माणाधीन इमारत भूकंप के झटके से जमींदोज हो गई जिसमें 8 लोगों मौत हो चुकी है। इसके अलावा 100 से ज्यादा लोगों के इमारत के मलबे में दबे होने की आशंका है। इस भूडोल की वजह से हमने बहुमंजिला इमारत पर बने स्विमिंग पूल को जाम की तरह छलकते देखा है। इस आपदा के शिकार लोगों के प्रति हमारी हार्दिक संवेदना है। आखिर म्यांमार हमारा पड़ौसी मुल्क है। ये बात और है कि म्यांमार के रोहिंगिया मुसलमानों से हमारी सरकार हमेशा परेशान रहती है।
अब बात करें सूर्यग्रहण की। वर्ष 2025 का पहला सूर्य ग्रहण 29 मार्च को आंशिक रूप में हुआ। नासा के अनुसार यह आंशिक सूर्य ग्रहण यूरोप, एशिया, अफ्रीका, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका तथा आर्कटिक के कुछ क्षेत्रों में देखा गया। भारत में यह नहीं दिखाई दिया क्योंकि इस दौरान चंद्रमा की छाया भारतीय उपमहाद्वीप तक नहीं पहुंचेगी। सूर्य और चन्द्रमा और धरती के बीच ये छाया युद्ध आज का नहीं है, बहुत पुराना है। हमारे पास तो इसे लेकर बाकायदा दंत कथाएं हैं, आख्यान हैं और कहावतें भी। हम सनातनी लोग हैं। आज भी इन दंत कथाओं से बाहर नहीं आए हैं और न आना चाहते हैं, क्योंकि इन्हीं में सुख है।
कहावतों की बात करें तो भारत में ग्रहण केवल सूर्य या चन्द्रमा को ही परेशान नहीं करता बल्कि राजनीति को, धर्म को, अर्थव्यवस्था को और आम नागरिकों को भी परेशान करता है। आजकल भारत भूकंप से महफूज है, लेकिन सियासी सूर्यग्रहण से अपने आपको नहीं बचा सका। भारत की समरसता, धर्म निरपेक्षता, सम्प्रभुता सभी को ग्रहण लगा है साम्प्रदायिकता का, संकीर्णता का, धर्मान्धता का। हमारे पास पहले ये सब चीजें नहीं थी। ये सियासी ग्रहण का ही उत्पाद हैं और अब इनका असर दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है क्योंकि भांग पूरे कुएं में घुल चुकी है। सूर्य ग्रहण हो या चंद्र ग्रहण सभी को प्रभावित करता है। वो हिन्दू मुसलमान नहीं देखता, लेकिन हमारी धर्मान्धता की सत्ता तो हिन्दू-मुसलमान की बैशाखियों पर ही टिकी है।
हम आजादी हासिल करने के बाद ‘नौ दिन चले लेकिन केवल अढ़ाई कोस’। हमारे साथ, हमारे पहले, हमारे बाद आजाद हुए देश कहीं के कहीं पहुंच गए, लेकिन हम जहां थे वहां से भी पीछे जाते नजर आ रहे हैं। जो साम्प्रदायिकता, धर्मान्धता आजादी के समय हुए विभाजन के बाद समाप्त हो जाना चाहिए थी वो आज भी ज़िंदा है। कुछ मुठ्ठी भर लोग हैं सियासत में जो आजादी के बाद पकिस्तान की तर्ज पर भारत को हिंदुस्तान बनाना चाहते थे। उस समय जब जंगे आजादी लड़ी जा रही थी, तब वे बिलों में थे। आज वे सब बिलों से बाहर आ चुके हैं और एक बार फिर पाकिस्तान के मुकाबले हिन्दुओं का हिंदुस्तान बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि हमें चीन जैसा मजबूत और अमेरिका जैसा महान बनना था।
भारत के संविधान ने किसी को कोशिश करने से नहीं रोका, इसलिए देश में पहली बार सड़कों पर ईद की नमाज पढ़ने पर पासपोर्ट छीनने की धमकियां दी जा रहीं है। नवरात्रि पर मांस बिक्री के इंतजाम किए जा रहे है। कब्रें और मस्जिदों को खोदने की मुहीम तो अब पुरानी पड़ गई है। धरती के नीचे से आने वाला भूकंप तो तबाही करके शांत हो जाता है। प्रकृतिक आपदा पर पीड़ित देश को दुनियाभर से राहत भी मिल जाती है, लेकिन धर्मान्धता और संकीर्णता के भूकंप के शिकार देश को दुनिया इमदाद नहीं करती। दुनिया तमाशा देखती है। हमारी कूपमंडूकता पर हंसती है, लेकिन हमारे ऊपर इन सबका कोई असर नहीं पड़ता। हम अपने पांवों पर कुल्हाड़ियाँ चलाने में ही बुद्धिमत्ता समझते हैं।
हमारे पड़ौसी हमसे बिदके हुए हैं। नेपाल से हमारे रिश्ते खराब हैं। बांग्लादेश अब चीन का बगलगीर हो रहा है। बांग्लादेश के यूसुफ़ साहब चीन की मेहमानी का मजा ले रहे हैं। हमने तो उन्हें लिफ्ट दी नहीं। पाकिस्तान से तो हमारे सदियों पुराने खराब रिश्ते हैं। इन रिश्तों को जब पंडित जवाहर लाल नेहरू नहीं सुधार पाए तो पंडित नरेंद्र मोदी की क्या बिसात ? हमारे प्रधानमंत्री ने दोस्त कम, दुश्मन ज्यादा बनाए हैं। हमारे हाथों में न अब शांति कपोत है और न निर्गुटता का कोई अस्त्र। हमारी लड़ाई हमसे ही है, इसलिए हमें किसी नए दुश्मन की जरूरत नहीं है। हम आपस में ही लड़-खप मरेंगे। हमारे पास इसका फुल प्रूफ इंतजाम है। हमने इस पर काम भी शुरू कर दिया है। अब भगवान ने भी हमारी मदद करने से इंकार कर दिया है। भगवान कहते हैं कि जब हमारा काम धीरेन्द्र शास्त्री जैसे बकलोल कर सकते हैं तो हमारा क्या काम तुम्हारे अंगने में ?
बहरहाल आज मैंने भी बकलोल ही की है, लेकिन मेरी बकलोल आपको सोचने के लिए मजबूर कर सकती है। मुमकिन है मुझसे दूर भी करे, लेकिन मैं तो मुसलमान नहीं हूं जो अपना मुल्क छोड़कर कहीं और चला जाऊं। मुसलमान भी होता तो मुल्क नहीं छोड़ता। किसी मुसलमान ने भी इतनी तकलीफों के बावजूद हिंदुस्तान नहीं छोड़ा है। हिंदुस्तान छोड़ने वाले तो माल्या हैं, मोदी हैं जो हिन्दू हैं मुसलमान नहीं। मैं आपसे कल फिर मिलूंगा, किसी नए मजमून के साथ। खुदा हाफिज़।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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