राकेश अचल। उत्तराखंड यानि देवभूमि। यहां के मुख्यमंत्री को भी हम देवता ही मानते हैं और हमें आज लगा कि उनका नाम पुष्कर धामी नहीं बल्कि नामदेव धामी होना चाहिए। वे राजनीति की उस वंश परंपरा से आते हैं जो इतिहास बनाने के बजाए उसे बदलने की होड़ में शामिल है। मुगलों के बाद सबसे पहले नाम बदलने का शौक चर्राया था बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो बहन मायावती को, लेकिन बाद में इसे भाजपा ने हडप लिया। भाजपा का हर मुख्यमंत्री अपने-अपने सूबे में ‘नाम बदलो’ अभियान का सूत्रपात कर चुका है और अब धामी साहब ने एक साथ डेढ़ दर्जन ठिकानों के नाम बदलकर अपने सभी वरिष्ठों को इस अभियान में पीछे छोड़ दिया है।
धामी साहब वैसे भी किसी काम के मुख्यमंत्री नहीं है। वे आम कठपुतलियों की तरह दिल्ली के इशारे पर नर्तन करते है। उनके पास करने के लिए कुछ है भी नहीं, क्योंकि उत्तराखंड में जो करते हैं वो सब देवता करते हैं, वो भी दिल्ली के देवता। नेता तो हां में हां मिलाते है। मुमकिन है कि थोक में नाम बदलने का आदेश भी धामी जी को ख्वाब में किसी देवता ने दिया हो। पुष्कर सिंह धामी ने हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल और उधमसिंह नगर जनपद में स्थित विभिन्न स्थानों के नाम में परिवर्तन की घोषणा की है। उन्होंने कहा है कि जनभावना और भारतीय संस्कृति व विरासत के अनुरूप ये नामकरण किए जा रहे हैं। इससे लोग भारतीय संस्कृति और इसके संरक्षण में योगदान देने वाले महापुरुषों से प्रेरणा ले सकेंगे।
धामी नकलची है। उन्होंने ‘सौगाते मोदी’ की नकल कर उत्तराखंड के मुसलमानों को ‘सौगाते धामी’ के नाम से ठीक ईद के दिन मुस्लिम शासकों द्वारा बसाए गए तमाम शहरों के नाम बदलने का तोहफा दिया है। जैसे हरिद्वार जिले का औरंगजेबपुर अब शिवाजी नगर, गाजीवाली-आर्य नगर, चांदपुर-ज्योतिबा फुले नगर, मोहम्मदपुर जट-मोहनपुर जट, खानपुर कुर्सली-अंबेडकर नगर, इदरीशपुर-नंदपुर, खानपुर-श्री कृष्णपुर, अकबरपुर फाजलपुर-विजयनगर के नाम से जाने जाएंगे।
देहरादून जिले में मियांवाला-रामजीवाला, पीरवाला-केसरी नगर, चांदपुर खुर्द-पृथ्वीराज नगर, अब्दुल्लापुर-दक्षनगर कहे जाएंगे। नैनीताल जिले का नवाबी रोड-अटल मार्ग, पनचक्की से आईटीआई मार्ग-गुरु गोलवलकर मार्ग, उधम सिंह नगर जिले की नगर पंचायत सुल्तानपुर पट्टी-कौशल्या पुरी कही जाएगी। नाम बदलने से न मुसलमानों का कुछ बिगड़ना है और न हिन्दुओं का, क्योंकि जिसकी गर्भनाल जहां जमीदोज है उसे तो धामी जी उखड़वा नहीं सकते। नाम बदलने को मैं मुगलिया संस्कृति मानता हूं। मुगलों ने किसी जगह का नाम क्यों बदला ये बताने वाला कोई मुगल सम्राट ज़िंदा नहीं है, लेकिन मैंने जितना इतिहास पढ़ा है उससे मैं ये समझा हूं कि वे जहां भी महीना-दो महीना अपना लश्कर रोकते थे उसे नया नाम दे जाते थे। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि भारत में पांच सौ साल बाद कोई उन्हीं की तरह नकल करते हुए फिर से उनके बसाए शहरों का नाम बदल देगा।
मेरी समझ में नहीं आता कि भाजपाई हों या बसपाई, सपाई हों या कांग्रेसी ये नई बसाहट करने के बजाए पुरानी बसाहटों के नाम क्यों बदलते हैं। कांग्रेस के ज़माने में मध्यप्रदेश में कांग्रेस नेता माधवराव सिंधिया के नाम से (साडा ने) 30 साल पहले एक शहर ग्वालियर में बसाने की कोशिश की थी, लेकिन बेचारा आज तक नहीं बस पाया। क्योंकि नया शहर बसाना आसान काम नहीं है। मुगलों ने ये काम कैसे कर लिया राम ही जानें ? भाजपा की सरकार भी देश में 10 साल से है, लेकिन मोदी जी ने एक भी नया नगर नहीं बसाया। ऐसे में वे मुगलों से केवल नफरत कर सकते हैं, मुकाबला नहीं। नया नगर बसाने की कुब्बत उत्तर प्रदेश के मुख़्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में भी नहीं है। वे भी इलाहबाद को प्रयागराज कर पाए, नया नगर नहीं बसा पाए। इलाहबाद हाई कोर्ट का नाम आज भी इलाहबाद हाई कोर्ट ही है। हमारे मध्यप्रदेश में भी होशंगाबाद का नाम बदला गया। हबीबगंज स्टेशन को रानी कमलापत कर दिया गया, क्योंकि ये आसान काम है।
किसी बसाहट या संस्था का नाम बदलना, उसकी बदलियत बदलने जैसा अक्षम्य अपराध नहीं है, लेकिन होना चाहिए। भाजपा सरकार तो ये काम करने से रही। वैसे ये अपराध किस राजनीतिक दल ने नहीं किया ? कांग्रेस के लंबे कार्यकाल में किसी बसाहट की बल्दियत बदली गई हो तो सुधि पाठक मुझे भी बताने की कृपा करें। नाम को व्याकरण में संज्ञा कहते हैं। संज्ञा बदली नहीं जाती, लेकिन भाजपाई कुछ भी बदल सकते हैं। मेरा मश्विरा है कि वे देश में रहने वाले करोड़ों मुसलमानों को देश निकाला तो दे नहीं सकते सो क्यों न मुसलमानों की बिरादरी का नाम बदलकर कोई भाजपा नेता उसे नया नाम दे दें तो हमेशा के लिए रट्टा ही खत्म हो जाए।
जहां तक मुझे याद आता है कि मोदी जी के राज में एक संसद भवन नया जरूर बना है। इसके लिए उन्हें साधुवाद। कांग्रेस ये सुकृत्य नहीं कर पाई जबकि पचास साल के करीब सत्ता में रही। अब ये बात और है कि नया संसद भवन पहली ही बरसात में टपकने लगा। क्या ही बेहतर हो कि पुराने को पुराना रहने दिया जाए और नया ही कुछ किया जाए। नया करना ही पुरुषार्थ है। ये नहीं कि किसी स्टेडियम पर कोई अपना नाम चस्पा करा दे और इतिहास पुरुष बन जाए। बहरहाल पुष्कर धामी को बधाई की वे भी नामदेव बन गए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

Author: Hindusta Time News
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