हेमंत आर्य, शाजापुर। हिंदू धर्म सनातन है और हमारे शास्त्रों में सृष्टि की रचना से लेकर प्रलय तक कई बातें बताई गई है। आज हम देश के विभिन्न दलों द्वारा अपनी राजनीतिक जमीन बनाने के लिए कार्यकर्ताओं के साथ भावनात्मक रूप से की जाने वाली रायशुमारी, मंथन, संगठन सृजन और सृष्टि की रचना हेतु देव-दानवों के सामूहिक प्रयासों से किए गए समुद्र मंथन की कुछ समानताओं पर बात करेंगे।
सभी राजनीतिक दल और उनके नेताओं की फितरत होती है कि वे एक तीर से कई निशाने साधते हैं, ठीक उसी प्रकार सृष्टि की रचना और विभिन्न रत्नों को प्राप्त करने सहित कई अन्य प्रयोजनों के लिए देव-दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि समुद्र मंथन के दौरान सृष्टि को 14 अनमोल रत्न भी प्राप्त हुए थे। जिसमें प्रमुख रूप से हलाहल (विष,जहर), कामधेनु गौ माता, उच्चेश्रवा नामक सफेद घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, मां लक्ष्मी, देवों के चिकित्सक धनवंतरी सहित सबसे अंत में समुद्र के गर्भ से अमृत निकला था। सृष्टि के लिए सभी 14 रत्न महत्वपूर्ण है। इन सभी 14 रत्नों को वर्तमान राजनीति से जोड़कर बहुत कुछ लिखा जा सकता है और लिखा भी गया होगा, लेकिन हम आज समुद्र मंथन में सबसे पहले निकलने वाले विष और सबसे आखिरी में निकलने वाले अमृत पर ही बात करेंगे।
मंथन की शुरुआत होते ही समुद्र के गर्भ से सबसे पहले हलाहल (विष, जहर) निकला। देव-दानवों दोनों ने विष को लेने से मना कर दिया। जहर को फैलता देखकर देव-दानवों में हड़कंप मच गया और सब तितर-बितर हो गए। सृष्टि के सृजन और मंथन की सफलता के लिए भूत भावन भगवान भोलेनाथ आगे आए और उन्होंने विष पान करने का निर्णय लिया। राजनीतिक परिदृश्य में देखा जाए तो जब भी कोई दल रायशुमारी, संगठन सृजन या मंथन करता है तो सबसे पहले उसमें से निकलने वाला विष किसी पार्टी के देवतुल्य कार्यकर्ताओं के हिस्से में आता है तो किसी पार्टी के बब्बर शेरों के। भगवान शिव द्वारा गटके गए विष को तो उनके पूरे शरीर में फैलने से पहले ही माता पार्वती ने प्रभु के कंठ (गले) पर हाथ रखकर रोक दिया था। इसी कारण भगवान शिव का कंठ नीला है और उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है, लेकिन विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता तो बेचारे विष गटकते-गटकते नीले छम पड़ गए हैं। पार्टी के प्रति निष्ठा और ईमानदारी के चलते उनका कंठ तो क्या पूरा शरीर ही नीला पड़ गया है, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
बताया जाता है कि प्रभु के कंठ में स्थित विष के प्रभाव को नियंत्रित रखने के लिए ही सनातनियों द्वारा आज तक शिव लिंग पर जल चढ़ाया जाता है। जबकि विभिन्न पार्टियों के देवतुल्य और बब्बर शेर कार्यकर्ता जो सक्रियता के साथ अपने दल के लिए गांव, गली, चौराहों और पोलिंग बूथों पर मेहनत करते हैं, ऐसे कार्यकर्ताओं को रायशुमारी, मंथन या सृजन के दौरान सबसे पहले विष पान कराया जाता है। न तो कोई नेता उनके कंठ पर हाथ रखता है और ना पीठ पर। शायद राजनीतिक दलों में नेताओं द्वारा कार्यकर्ताओं को इसीलिए विष पान कराया जाता है कि उनके पूरे शरीर में जहर फैल जाए और उनकी योग्यता, काबिलियत की भ्रूण में ही हत्या हो जाए। चालिए यह तो हुई विष की बात अब मंथन से प्रकट हुए सबसे आखिरी रत्न अमृत की बात करते हैं।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सनातन काल से ही देव-दानवों के साथ ही प्रत्येक जीव की इच्छा अमरत्व को प्राप्त करने की रही है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के सबसे अंत में निकलने वाले अमृत को सबसे पहले ग्रहण करने के लिए भी देव-दानवों में विवाद की स्थिति निर्मित हुई। इसी बीच भगवान श्री हरि विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर दानवों का ध्यान अमृत कलश से भटकाया और देवताओं को अमृत पिलाने लगे। देवताओं की पंक्ति में उनका वेश बनाकर छिपे मायावी दानव राहु ने भी छल से अमृत पी लिया। यह जानकारी लगते ही श्री हरि विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन अमृत पी लेने के कारण उसके शरीर के दोनों हिस्से जीवित ही रहे। अमरत्व प्राप्त होने के कारण मायावी दानव के शरीर के इन दोनों हिस्सों को राहु और केतु के नाम से नवग्रहों में शामिल किया गया।
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में पार्टी के लिए विष पान करने वाले देव तुल्य और बब्बर शेर कार्यकर्ता जब अमृत पीने की लाईन में लगते हैं तो चापलूस, चाटुकार नेता मायावी दानव राहु की तरह देवताओं का वेश बनाकर उनका अधिकार छीन लेते हैं और अमृत पान कर लेते हैं। वर्तमान समय में किसी भी राजनीतिक दल में श्री हरि विष्णु के चरित्र जैसा कोई नेता तो बचा नहीं, जो किसी कार्यकर्ता का अधिकार छीनने वाले नेताओं (दानवों) का सिर धड़ से अलग कर दे। इसलिए किसी भी पार्टी के स्वाभिमानी, ईमानदार, निष्ठावान देव तुल्य और बब्बर शेर कार्यकर्ता आगे बढ़ ही नहीं पाते और मायावी दानव राहु-केतु दोनों दलों में मजे मारते हैं। इन मायावी दानवों का सिर एक पार्टी में रहता है और धड़ दूसरी पार्टी में। वैसे राहु-केतु अशुभ छाया ग्रह है और इनका चरित्र ही लोगों को कष्ट और पीढ़ा देने का होता है। भले ही इन मायावी दानवों ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, लेकिन ये कुंडली के जिस घर में भी रहेंगे व्यक्ति को परेशान ही करेंगे। उचित ज्योतिष सलाह लेकर समय रहते इन मायावी छाया ग्रहों की शांति के उपाय कर लेना चाहिए, अन्यथा ये जिंदगी में हमेशा उथल-पुथल करते हुए कष्ट ही देते रहते हैं।
कुल मिलाकर राजनीतिक दलों का मंथन, रायशुमारी और सृजन सिर्फ कार्यकर्ताओं को भावनात्मक रूप से ठगने के अलावा कुछ भी नहीं है। कार्यकर्ताओं को भावनात्मक रूप से पार्टी से जोड़े रखने के लिए कभी किसी के नाम पर तो कभी किसी के नाम पर सिर्फ माहौल बनाया जाता है। किसी भी दल के स्थानीय नेता जब कार्यकर्ताओं, मतदाताओं का विश्वास खो चुके होते हैं तो उन्हें संतुष्ट करने और विश्वास में लेने के लिए पार्टी के प्रदेश हाईकमान को आगे कर देते हैं। जब प्रदेश के नेताओं पर से भी कार्यकर्ताओं का भरोसा उठ जाता है तो वे केंद्रीय नेतृत्व के विश्वास को भी कार्यकर्ताओं के बीच मटियामेट करने से बाज नहीं आते। केंद्रीय नेतृत्व के नाम पर भी पार्टी कार्यकर्ताओं को दो चार-बार ही ठगा जा सकता है, फिर इसके बाद कौन.. ट्रंप, पुतिन या जिनपिंग..? बार-बार कार्यकर्ताओं का भरोसा तोड़ने से तो अच्छा है कि स्थानीय और प्रदेश के नेता अपनी फितरतों से बाज आए और चमड़े के सिक्के चलाने के बजाए योग्य और काबिल कार्यकर्ताओं को पार्टी में उनका हक, अधिकार दिलाएं। मौका परस्त नेता अपनी फितरतों से मतदाताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं का विश्वास तो खो ही चुके हैं, लेकिन अब पार्टी हाईकमान को भी कार्यकर्ताओं के बीच जलील करने से बाज नहीं आ रहे है।
इतिहास गवाह है कि नव सृजन के लिए जब भी मंथन किया जाता है तो उसमें से विष और अमृत दोनों ही निकलते है, लेकिन वर्तमान कलयुग में विष बार-बार ईमानदार, सक्रिय और समर्पित लोगों के हिस्से में ही आ रहा है। आपको याद दिला दें कि दुर्वासा ऋषि के श्राप से लक्ष्मीपति सहित सभी देवता भी श्री हीन हो गए थे तो लोगों का हक मारने वाले लक्ष्मी पुत्र किस खेत की मूली है। हमने अपने छोटे से शहर में ही बड़े-बड़े लक्ष्मी पुत्रों के टापरे बिकते देखे हैं। समय का काम ही है बदलना, आज नहीं तो कल, लेकिन बदलेगा जरूर। बाकी 12 रत्नों पर फिर किसी दिन बात करेंगे। जय सियाराम।

Author: Hindusta Time News
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